तालिबान पर बदल सकता है मोदी सरकार का रुख, चीन की काट होगा लक्ष्य
अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारत भी बदलते हालातों में तालिबान (Taliban) के साथ अपने रुख में बदलाव लाकर बातचीत के दरवाजे खुले रख सकता है.
highlights
- रूस औऱ चीन के लचीले रूख के बाद भारत के पास विकल्प कम
- देशहित में तालिबान से बातचीत के दरवाजे खोल सकता है भारत
- राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत के बाद मोदी सरकार के रुख में बदलाव
नई दिल्ली:
अफगानिस्तान (Afghanistan) में दो दशकों बाद तालिबान राज की वापसी पर भले ही रूस समेत चीन ने अपने पत्ते पहले खोल दिए हों, लेकिन भारत की मोदी सरकार (Modi Government) ने वेट एंड वॉच पॉलिसी को अपनाना ही श्रेयस्कर समझा. साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNGC) के जरिये तालिबान के खिलाफ वैश्विक जनमत के जरिये दबाव बनाना भी जारी रखा. इसके साथ ही भारत ने अपने सदाबहार दोस्त रूस से भी बातचीत कर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के बदलते समीकरणों पर अपने हित सर्वोपरि रखने की प्राथमिकता दोहराई. खासकर अफगानिस्तान के प्रति चीन औऱ पाकिस्तान के लचीले रुख के बाद भारत के लिए भी अपनी दशा-दिशा में बदलाव करना जरूरी हो गया है. ऐसे में अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भारत भी बदलते हालातों में तालिबान (Taliban) के साथ अपने रुख में बदलाव लाकर बातचीत के दरवाजे खुले रख सकता है. कयास लगाए जा रहे हैं पीएम मोदी की अफगानिस्तान पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी विपक्ष के साथ इस संभावना पर चर्चा की गई.
तालिबान पर अलग-थलग नहीं रह सकता भारत
सामरिक औऱ कूटनीतिक लिहाज से देखें तो अफगानिस्तान पर तालिबान राज की वापसी को लेकर पाकिस्तान-चीन जैसे पड़ोसी देशों ने जो रुख जाहिर किया, उससे भारत के पास अब कोई बहुत ज्यादा विकल्प बचे नहीं हैं. चीन काफी पहले से तालिबान के साथ परोक्ष रूप से बातचीत कर रहा है. विगत दिनों बीजिंग प्रशासन ने कहा था कि शी जिनपिंग सरकार और तालिबान के अधिकृत प्रतिनिधियों के बीच बातचीत शुरू हुई है. गौरतलब है कि चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने भी तालिबान के सभी प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की थी. रूस भी तालिबान से सशर्त संबंधों का हिमायती है. पाकिस्तान तो पहले ही तालिबान की गोद में जा बैठा है और उनकी मदद से कश्मीर पर कब्जे के सपने देख रहा है.
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देशहित में सरकार के रुख में बदलाव संभव
जाहिर है ऐसी स्थिति में भारतीय कूटनीति का तालिबान को लेकर नजरिया बदलना लाजिमी है. मीडिया रिपोर्ट्स से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि देश के दीर्घकालिक हितों को देखते हुए तालिबान के साथ वार्ता की शुरुआत भी हो सकती है. विशेषज्ञ पीएम नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई तकरीबन 45 मिनट लंबी बातचीत को भारत के इसी रुख से जोड़ कर देख रहे हैं. विदेश मंत्रालय के सूत्र भी कह रहे हैं कि देशहित सर्वोपरि है और इसके लिए बहुत कुछ किया जाता है. विदेश मंत्रालय के अधिकारी की यह बात सरकार के मिजाज में आ रहे बदलाव को बता रही है.
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सभी बड़े देशों की बदल रही कूटनीति
हालांकि इससे पहले भी इस आशय की खबरें आईं कि कतर की राजधानी दोहा में कुछ महीने पहले भारतीय दल की तालिबान के प्रतिनिधियों से बातचीत हुई थी. कतर के विदेश मंत्री के अफगानिस्तान शांति वार्ता मामलों में सलाहकार मुतलाक बिन माजेद अल-कहतानी ने ही यह जानकारी दी थी. अल-कहतानी छह अगस्त, 2021 को भी भारत के दौरे पर आए थे और यहां विदेश मंत्री एस जयशंकर व दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की थी. गौरतलब है कि चीन सरकार ने यह भी कहा है कि वह अफगानिस्तान सरकार के साथ अपनी चीन पाकिस्तान इकोनामिक कारिडोर (सीपीईसी) को आगे बढ़ाना चाहेगा. ब्रिटेन ने भी कहा है कि अगर तालिबान का रवैया ठीक रहा, तो वह उसके साथ काम करने को तैयार है. मंगलवार को समूह-7 देशों की बैठक में भी तालिबान को समर्थन की कुछ शर्तें तय की गई हैं. ऐसे में भारत भी तालिबान की खुलेआम मुखालफत का जोखिम मोल नहीं ले सकता है. संभवतः इसीलिए आने वाले दिनों में इस बारे में सरकार आधिकारिक स्तर पर अपने पक्ष की कोई घोषणा कर दे.
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