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इलाहाबाद हाईकोर्ट की दो टूक,  नहीं खुलेंगे ताजमहल के 22 दरवाजे, याचिका खारिज

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ताजमहल के इतिहास के तथ्यों की जांच की मांग वाली याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया. इस याचिका में मे याचिकर्ता ने ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलने की भी मांग की गई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया.

Updated on: 12 May 2022, 04:54 PM

highlights

  • ताज महल के बंद पड़े 22 कमरों पर हाई कोर्ट में हुई सुनवाई
  • इलाहाबाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमकर लगाई फटकार
  • बोले, कल हमारे चैंबर के बारे में भी जानना चाहेंगे 

लखनऊ:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ताजमहल के इतिहास के तथ्यों की जांच की मांग वाली याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया. इस याचिका में मे याचिकर्ता ने ताजमहल के 22 बंद कमरों को खोलने की भी मांग की गई थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि ताजमहल के पीछे की असली सच्चाई का पता लगाने के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित करने की याचिका गैर न्यायोचित है.  न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमत नहीं है. याचिकाकर्ताओं ने धर्म की स्वतंत्रता के बारे में पिछले उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को प्रस्तुत किया था. पर कोर्ट ने कहा कि ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों के सर्वेक्षण के लिए के लिए एक तथ्य खोज समिति की मांग करना आपके अधिकारों के दायरे में नहीं आता है. हम अपकी दलीलों से आश्वस्त नहीं हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आरटीआई के दायरे में नहीं आता है.

दरअसल, ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाने और इसकी असलियत जानमने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की है. याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई. कोर्ट ने जनहित याचिका पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि जनहित याचिका (PIL) का मजाक न बनाएं.

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गौरतलब है कि ताजमहल के 22 कमरों को खोलने को लेकर दायर याचिका पर गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई हुई. याचिका पर  जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच में यह सुनवाई हुई. इस दौरान जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई. उन्होंने जनहित याचिका की व्यवस्था का दुरुपयोग न करने की बात कही. इसके आगे कोर्ट ने कहा कि कल आप आएंगे और कहेंगे कि हमें माननीय जज के चेंबर में क्या है, यह जाने की इजाजत चाहिए?

ज्यादा जानकारी चाहिए तो पीएचडी करिए
 हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा, क्या आप मानते हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनाया था? क्‍या आप हम यहां कोई फैसला सुनाने आए हैं कि इसे किसने बनवाया था या ताजमहल की उम्र कितनी है? इसके बाद कोर्ट ने कहा भी आपको जिस बारे में पता नहीं है, उस पर शोध कीजिए. जाइए एमए कीजिए. पीएचडी कीजिए, इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर आपको कोई संस्‍थान इस विषय पर शोध करने से अगर कोई रोक रहा है तो फिर हमारे पास आइए. 

तो क्या हमारे चैंबर की जानकारी भी मांगी जाएगी
मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपने ताजमहल के 22 कमरों की जानकारी किससे मांगी? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हमने अथॉरिटी से जानकारी मांगी थी. इस पर हाईकोर्ट ने पूछा कि यदि उन्होंने कहा है कि सुरक्षा कारणों से कमरे बंद हैं तो यह जानकारी है. यदि आप इससे संतुष्ट नहीं हैं तो इसे चुनौती देना चाहिए था. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हमने उन कमरों में क्या है, यह जानने की इजाजत मांगी थी. इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि इसके बाद कल आकर आप कहेंगे कि हमें माननीय जजों के चैंबर में जाना है और जानना है कि यहां क्या है. इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि आप जनहित याचिका का मजाक न बनाएं. इसके बाद हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए अगले सत्र का वक्त दिया. 

गौरतलब है कि ताजमहल पूरी दुनिया के लिए भले एक एक अजूबा और मुगल बादशाह शाहजहां की अपनी बेगम मुमताज महल की प्यार की निशानी हो, लेकिन हिंदूवादी संगठनों के लिए मुगल आक्रान्ता शाहजहां से जुड़ी एक बुरी याद है. वह इस ताजमहल को तेजो महालय बनाने पर आमादा दिखते रहे हैं. इसी कड़ी में ये याचिका दायर की गई थी.