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कितनी पीढ़ियों तक जारी रहेगा कोटा? सुप्रीम कोर्ट 50 फीसदी की सीमा पर सख्त

शीर्ष न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की.

शीर्ष न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की.

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Nihar Saxena
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Supreme Court

आरक्षण की सीमा से परे जाकर आरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मराठा कोटा (Maratha Reservation) मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जानना चाहा कि कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण (Reservation) जारी रहेगा. शीर्ष न्यायालय ने 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की. महाराष्ट्र (Maharashtra) सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि कोटा की सीमा तय करने पर मंडल मामले में (शीर्ष न्यायालय के) फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में पुनर्विचार करने की जरूरत है. 

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आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्य पर छोड़ें
उन्होंने कहा कि न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए और मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था. मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र के कानून के पक्ष में दलील देते हुए रोहतगी ने मंडल मामले में फैसले के विभिन्न पहलुओं का हवाला दिया. इस फैसले को इंदिरा साहनी मामला के रूप में भी जाना जाता है. 

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ईडब्ल्यूएस को आरक्षण भी सीमा का उल्लंघन
उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला भी 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है. इस पर पीठ ने टिप्पणी की, 'यदि 50 प्रतिशत की सीमा या कोई सीमा नहीं रहती है, जैसा कि आपने सुझाया है, तब समानता की क्या अवधारणा रह जाएगी. आखिरकार, हमें इससे निपटना होगा. इस पर आपका क्या कहना है...इससे पैदा होने वाली असमानता के बारे में क्या कहना चाहेंगे. आप कितनी पीढ़ियों तक इसे जारी रखेंगे.'

वक्त है आरक्षण सीमा से कुछ को बाहर किया जाए
पीठ में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति रविंद्र भट शामिल हैं. रोहतगी ने कहा कि मंडल फैसले पर पुनर्विचार करने की कई वजह है, जो 1931 की जनगणना पर आधारित था. साथ ही, आबादी कई गुना बढ़ा कर 135 करोड़ पहुंच गई है. पीठ ने कहा कि देश की आजादी के 70 साल गुजर चुके हैं और राज्य सरकारें कई सारी कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं तथा क्या हम स्वीकार कर सकते हैं कि कोई विकास नहीं हुआ है, कोई पिछड़ी जाति आगे नहीं बढ़ी है. न्यायालय ने यह भी कहा कि मंडल से जुड़े फैसले की समीक्षा करने का यह उद्देश्य भी है कि पिछड़ेपन से जो बाहर निकल चुके हैं, उन्हें अवश्य ही आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए. 

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आरक्षण के पक्ष में दी गई यह दलील
इस पर रोहतगी ने दलील दी, 'हां, हम आगे बढ़े हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि पिछड़े वर्ग की संख्या 50 प्रतिशत से घट कर 20 प्रतिशत हो गई है. देश में हम अब भी भूख से मर रहे हैं...मैं यह नहीं कहने की कोशिश कर रहा हूं कि इंदिरा साहनी मामले में फैसला पूरी तरह से गलत था और इसे कूड़ेदान में फेंक दिया जाए. मैं यह मुद्दा उठा रहा हूं कि 30 साल हुए हैं, कानून बदल गया है, आबादी बढ़ गई है, पिछड़े लोगों की संख्या भी बढ़ गई है.'

सोमवार को फिर होगी सुनवाई
उन्होंने कहा कि ऐसे में जब कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक है, तब यह नहीं कहा जा सकता कि यह ''ज्वलंत मुद्दा नहीं है और 30 साल बाद इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है. मामले में बहस बेनतीजा रही और सोमवार को भी दलील पेश की जाएगी. गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने को कायम रखा गया था. 

HIGHLIGHTS

  • सुप्रीम कोर्ट की मराठा आरक्षण पर गंभीर टिप्पणी
  • सोमवार को भी जारी रहेगी इसी मसले पर सुनवाई
  • आरक्षण की सीमा का उल्लंघन है वर्तमान व्यवस्था
पीढ़ियां maharashtra महाराष्ट्र Mandal Commission Generations मराठा आरक्षण reservation Creamy Layer Maratha Reservation सुप्रीम कोर्ट Supreme Court मंडल कमीशन सर्वोच्च न्यायालय
      
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