आईटी एक्ट की धारा 66 A के तहत FIR पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सभी राज्यों को नोटिस

2015 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से असंवैधानिक घोषित किये जाने के बावजूद भी आईटी एक्ट की धारा 66 A के तहत पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज होने के मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है.

2015 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से असंवैधानिक घोषित किये जाने के बावजूद भी आईटी एक्ट की धारा 66 A के तहत पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज होने के मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है.

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Kuldeep Singh
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सुप्रीम कोर्ट ( Photo Credit : न्यूज नेशन)

2015 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से असंवैधानिक घोषित किये जाने के बावजूद भी आईटी एक्ट की धारा 66 A के तहत पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज होने के मामले को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है. PUCL की ओर से दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के साथ ही सभी राज्यों के हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी नोटिस जारी किया है. इससे पहले केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा था कि ये राज्यों की जिम्मेदारी बनती है कि वो  66 A को रद्द घोषित होने के बाद इसके तहत एफआईआर दर्ज करना बंद करें. 

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इससे पहले कोर्ट ने इस पर नाराजगी और हैरानी जताते हुए सरकार से जवाब मांगा था. एनजीओ PUCL की ओर से दायर अर्जी में कहा गया था कि आईटी एक्ट की धारा 66 A को सुप्रीम कोर्ट से 2015 में रद्द किए जाने के बावजूद 11 राज्यों में 229 केस पेंडिंग है. पुलिस ने 1307 नई एफआईआर दर्ज की हैं.

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बीते महीने पांच जुलाई को न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया था.  हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आईटी मंत्रालय को भेजी अपनी चिट्ठी में 2015 के आदेश का पालन करने को लेकर सूचना दी है लेकिन राज्य सरकारों के अधीन आने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों की यह जिम्मेदारी है कि वे आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कोई नया केस दर्ज न करें. केंद्र ने हलफनामे में यह भी कहा है कि पुलिस और पब्लिक ऑर्डर भारत के संविधान के मुताबिक राज्यों के मामले हैं और किसी मामले की जांच, सजा देना प्राथमिक तौर पर राज्यों के अधीन आता है। हर राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियां ही साइबर क्राइम करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करती हैं. इसलिए यह उनकी भी जिम्मेदारी है कि वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करे. 

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