logo-image

SC ने इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर के भीतर मस्जिद को 3 महीने में हटाने का निर्देश दिया

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मस्जिद हटाने के निर्देश के साथ याचिकाकर्ताओं को इस बात की अनुमति भी दी कि वे मस्जिद के लिए पास की वैकल्पिक जमीन हासिल करने के लिए यूपी सरकार को अपना प्रतिनिधित्व दे सकते हैं.

Updated on: 16 Jan 2024, 02:28 PM

highlights

  • लीज की जमीन के टुकड़े पर बना ली गई थी मस्जिद
  • कपिल सिब्बल ने कहा सरकार बदलते ही सब बदला
  • यूपी सरकार मस्जिद के लिए पास में विकल्प तलाशे

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से एक मस्जिद को तीन महीने के अंदर हटाने का निर्देश सक्षम अधिकारियों को दिया है. साथ ही शीर्ष अदालत ने मस्जिद (Mosque) को गिराने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं को दो टूक कहा कि मस्जिद समाप्त हो चुकी लीज पर खड़ी थी. ऐसे में वे मस्जिद पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते. वक्फ मस्जिद उच्च न्यायालय और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बतौर याचिकाकर्ता नवंबर 2017 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने अपने आदेश में मस्जिद को परिसर से बाहर करने के लिए तीन महीने का समय दिया था. शीर्ष अदालत ने मस्जिद नहीं हटाए जाने की याचिका सोमवार को खारिज कर दी.

लीज खत्म होते ही अधिकार भी खत्म
हालांकि जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने मस्जिद हटाने के निर्देश के साथ याचिकाकर्ताओं को इस बात की अनुमति भी दी कि वे मस्जिद के लिए पास की वैकल्पिक जमीन हासिल करने के लिए यूपी सरकार को अपना प्रतिनिधित्व दे सकते हैं. सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ताओं को दो टूक स्पष्ट किया कि जमीन का पट्टा दिया गया था, जिसे खत्म कर दिया गया. ऐसे में याचिकाकर्ता इसे जारी रखने के अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा, 'हम याचिकाकर्ताओं को निर्माण को गिराने के लिए तीन महीने का समय देते हैं और यदि आज से तीन महीने के भीतर निर्माण को नहीं हटाया जाता है, तो उच्च न्यायालय सहित सक्षम प्राधिकारियों को उन्हें हटाने या ध्वस्त करने का विकल्प स्वतः मिल जाएगा.'

कहीं नमाज पढ़ने की अनुमति से वह जगह मस्जिद नहीं बन जाती
मस्जिद की प्रबंधन समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद 1950 के दशक से वहां पर है और इसे यूं ही हटाने के लिए नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा, '2017 में सरकार बदली और सब कुछ बदल गया. नई सरकार बनने के 10 दिन बाद ही एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जब वे हमें वैकल्पिक स्थान दे देते हैं, तो हमें मस्जिद स्थानांतरित करने में कोई समस्या नहीं है.' उच्च न्यायालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी तरह से धोखाधड़ी का मामला है. उन्होंने कहा, 'दो बार नवीनीकरण के आवेदन आए थे और इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि मस्जिद का निर्माण किया गया है और इसका उपयोग जनता कर रही है. उन्होंने नवीनीकरण की मांग के पक्ष में आवासीय उद्देश्यों की जरूरत बताई थी. केवल यह तथ्य कि वे वहां नमाज अदा कर रहे हैं, इसे एक मस्जिद नहीं बना देता.' उन्होंने आगे दलील देते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के बरामदे में सुविधा के लिए नमाज की अनुमति दी जाती है, तो वह मस्जिद नहीं बन जाएगी.

यह भी पढ़ेंः  Toll Tax: अब हाईवे से हटेंगे टोल-नाके, नितिन गडकरी ने बताया नया प्लान

यूपी सरकार मस्जिद के लिए पास में वैकल्पिक जमीन की तलाश करे
शीर्ष अदालत ने इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार से मस्जिद को स्थानांतरित करने के लिए जमीन देने की संभावना तलाशने को कहा था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके पास मस्जिद को स्थानांतरित करने के विकल्प के तौर पर कोई जमीन नहीं है. ऐसे में सरकार इस पर विचार कर सकती है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि पार्किंग के लिए पहले से ही जगह की कमी है. शीर्ष अदालत ने सोमवार को निर्देश जारी करने से पहले संबंधित पक्षों से परस्पर सहमति से मस्जिद के स्थानांतरण पर किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के निर्देश दिए थे.