केरल : भारी विरोध प्रदर्शन के बीच सबरीमाला मंदिर का कपाट खुला, तृप्ति देसाई वापस लौटीं
केरल में सबरीमाला मंदिर का कपाट शाम 5 बजे दो महीने के लिए खुल गया लेकिन मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को लेकर संग्राम जारी है.
नई दिल्ली:
केरल में सबरीमाला मंदिर का कपाट कड़ी सुरक्षा के बीच शाम 5 बजे दो महीने के लिए खुल गया लेकिन मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को लेकर संग्राम जारी है. शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने कोच्चि एयरपोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया और आखिरकार उन्हें वापस लौटने का निर्णय लेना पड़ा. वो आज रात को पुणे वापस लौट जाएंगी. हिंदूवादी प्रदर्शनकारियों के भारी विरोध के बीच सबरीमाला मंदिर का दर्शन करने शुक्रवार सुबह पहुंची तृप्ति देसाई और छह अन्य महिलाएं 12 घंटे से ज्यादा एयरपोर्ट पर ही फंसी रहीं. पुलिस की अपील के बावजूद तृप्ति ने कहा था कि वह भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश किए बिना नहीं लौटेंगी.
कपाट खुलने के मौके पर दो नये पुजारियों एम एल वासुदेवन नंबूदरी (अयप्पा मंदिर) और एम एन नारायणन नंबूदरी (मलिकापुरम) ने पदभार संभाला. 41 दिनों तक चलने वाला मंडलम उत्सव मंडला पूजा के बाद 27 दिसंबर को संपन्न होगा जब मंदिर को 'अथाझापूजा' के बाद शाम को बंद कर दिया जाएगा। यह 30 दिसंबर को मकराविलक्कू उत्सव पर फिर से खुलेगा। मकराविलक्कू उत्सव 14 जनवरी को मनाया जाएगा जिसके बाद मंदिर 20 जनवरी को बंद हो जाएगा.
इससे पहले गुरुवार को मंदिर में हर उम्र की महिलाओं की एंट्री को लेकर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक से कांग्रेस और बीजेपी ने वॉकआउट करते हुए विजयन सरकार से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले को लागू करने के लिए और वक्त मांगे. इसके साथ ही दोनों दलों ने बैठक से वॉकआउट कर दिया.
गौरतलब है कि जहां केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने पर अडिग है, वहीं कांग्रेस और बीजेपी इस मसले पर मंदिर की परंपरा के पालन का तर्क दे रही है.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि सभी उम्र की महिलाओं (पहले 10-50 वर्ष की उम्र की महिलाओं पर बैन था) को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलेगी. वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 48 पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए 22 जनवरी की तारीख मुकर्रर की गई है.
कोर्ट ने क्या कहा था
अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी.
पूर्व मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता. सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता.'
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