राइट टू प्राइवेसी: इमरजेंसी के दौरान दिये पिता के फैसले को बेटे ने बदला, कहा-फैसले में थी खामियां
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 1975 में अपने पिता और तत्कालीन जज वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को उलट दिया है जिसमें उन्होंने आम नागरिक के जीवन के अधिकार को खत्म करने संबंधी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के फैसले के पक्ष में निर्णय दिया था।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू प्राइवेसी पर अपना फैसला दे दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की बेंच ने इसे अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना है। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने एक ऐतिहासिक गलती को सुधारा है। लेकिन एक जज ऐसे भी थे जिन्होंने अपने पिता के फैसले को बदल दिया है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 1975 में अपने पिता और तत्कालीन जज वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को उलट दिया है जिसमें उन्होंने आम नागरिक के जीवन के अधिकार को खत्म करने संबंधी तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के फैसले के पक्ष में निर्णय दिया था।
1975 में इमरजेंसी के दौरान जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ का फैसला सुप्रीम कोर्ट के 67 साल के इतिहास में एक दाग माना जाता रहा है।
जब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने फैसला सुनाया तो डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को खारिज कर दिया।
अपने पिता के फैसले के विपरित जाते हुए डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उस दौरान चार जजों की बेंच ने जो फैसला दिया था उसमें खामियां थी।
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1976 के जजमेंट में जस्टिस एमएच बेग ने जजमेंट लिखा था। जिस पर तत्कालीन चीफ जस्टिस ए एन रे, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएन भगवती ने सहमति जताई थी। हालांकि जस्टिस एच आर खन्ना ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था।
41 साल पहले की गई संवैधानिक गलती को सुधारने के लिये बेटे चंद्रचूड़ ने कड़ा फैसला लेते हुए अपने पिता के निर्णय के खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा, 'एडीएम जबलपुर मामले में चारों जजों के फैसले में गंभीर गलती है.... इसे खारिज किया जाता है।'
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उन्होंने कहा, 'निजी स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार को लेकर जस्टिस खन्ना बिलकुल सही थे। संविधान के तहत इसकी आज़ादी है....भारत के लोगों ने मानवीय पक्ष के एक सबसे महत्वपूर्ण अंग को खो दिया था जो जीवन, स्वतंत्रता और अधिकार हैं। इन्हें प्रशासन की दया पर छोड़ दिया गया जिनके सभी अधिकार सरकार के हाथ में होंगे।'
जबलपुर के एडीएम और शिवकांत शुक्ला केस पर दिये फैसले पर उन्होंने कहा, 'जब किसी देश का इतिहास लिखा जाता है और आलोचना होती है तो सबसे पहले स्वतंत्रता पर न्यायिक फैसलों को भी सामने रखा जाता है। ऐसे में जो नहीं होना चाहिये थो उसे खत्म कर दिया जाना चाहिये।'
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