राइट टू प्राइवेसी: जानिए आधार कार्ड से कितना अलग है अमेरिका का SSN कार्ड
आज सुप्रीम कोर्ट राइट टू प्राइवेसी यानि की किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारी उसका मौलिक अधिकार है या नहीं इस पर अपना फैसला सुनाएगी।
highlights
- निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इसपर सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला
- आधार कार्ड और अमेरिका के सामाजिक सुरक्षा नंबर कार्ड में है बेहद अंतर
नई दिल्ली:
आज सुप्रीम कोर्ट राइट टू प्राइवेसी यानि की किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारी उसका मौलिक अधिकार है या नहीं इस पर अपना फैसला सुनाएगी। राशन कार्ड से लेकर बैंकिंग और परीक्षा से लेकर ट्रेन टिकट के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाए जाने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि आधार कार्ड के लिए बायोमेट्रिक रिकॉर्ड की जानकारी लेना निजता का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने विवाद को खत्म करने के लिए तय किया कि आधार कार्ड की वैधता पर सुनवाई से पहले ये तय किया जाए कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं।
सरकार का मानना है कि आधार जैसी योजना गरीबों को भोजन, आवास जैसे बुनियादी अधिकारों को दिलाने के लिए लाई गई है, ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। आधार कार्ड की तरह ही विश्व के सबसे विकसित देशों में से एक अमेरिका में भी गरीबों के हितों के लिए एक विशेष नंबर सिस्टिम बनाया गया था। आज हम आपको बताते हैं आधार कार्ड और अमेरिका के सामाजिक सुरक्षा नंबर (एसएसएन) में मूल रूप से क्या अंतर है और वो आधार कार्ड से कितना बेहतर है।
आधार कार्ड आपकी पहचान संख्या लेकिन सामाजिक सुरक्षा नंबर (एसएसएन) नहीं
आधार कार्ड जहां आपकी पहचान है और इसमें आपका नाम, पता सहित सभी निजी जानकारी दर्ज रहती है वैसा अमेरिका के सामाजिक सुरक्षा नंबर में नहीं है। अमेरिका में साल 1936 में गरीबों की पहचान और उनकी समस्या को दूर करने के लिए उनकी पहचान कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा नंबर कार्ड दिया गया था।
साल 2009 में अमेरिकी सरकार ने इसमें सुधार करते हुए माना कि सामाजिक सुरक्षा नंबर कार्ड पेश करने वाला शख्स सच में वही व्यक्ति हो जिसका नाम कार्ड पर दर्ज है ये जरूरी नहीं।
आधार कार्ड से व्यक्ति की पहचान लेकिन सामाजिक सुरक्षा नंबर से नहीं।
आधार कार्ड में फिगरप्रिंट और आपके आंखों की पुतली की जानकारी दर्ज है। डेटा बेस में आपके आधार नंबर को डालते ही आपका परिचय और आपसे जुड़ी हर जानकारी पता की जा सकती है। इसके पीछे सरकार की दलील है कि बॉयोमेट्रिक सिस्टम की वजह से इसमें कोई फर्जीवाड़ा नहीं कर सकता। जबकि सामाजिक सुरक्षा नंबर में ऐसा कुछ नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर इससे पहचान जाहिर नहीं होती। सामाजिक सुरक्षा नंबर में किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारी दर्ज नहीं होती।
आधार कार्ड में बायोमेट्रिक्स सिस्टम से आपके शरीर की निजी जानकारी लेकिन सामाजिक सुरक्षा नंबर में नहीं।
जब कोई आदमी अपना आधार कार्ड बनवाता है तो उस दौरान व्यक्ति का फिंगरप्रिंट और आंखों की पुतली की जानकारी डेटा बेस में दर्ज की जाती है। सामाजिक सुरक्षा नंबर में पहले फिंगरप्रिंट नहीं लिया जाता था लेकिन और ना ही उसपर कोई तस्वीर होती थी। लेकिन 2007 के बाद आतंकी वारदातों और आपराधिक मामलों को लेकर इसमें में भी फिंगरप्रिंट को अनिवार्य करने की बात उठी लेकिन इसे बाद में अस्वीकार कर दिया गया। साल 2011 में भी बायोमेट्रिक पहचान कार्ड जारी करने पर वहां बहस हुई लेकिन विरोध के बाद इसका भी कोई विकल्प नहीं निकला।
आधार कार्ड में व्यक्ति से जुड़ी हर जानकारी डेटाबेस में, सामाजिक सुरक्षा नंबर (एसएसएन) में नहीं
आधार में दी गई हर जानकारी सरकार के पास मौजूद डेटा बेस में दर्ज है। कोई भी सरकारी एजेंसी इसका सही या गलत इस्तेमाल कर सकती है। किसी निर्दोष को भी इससे नुकसान पहुंचाया जा सकता है लेकिन सामाजिक सुरक्षा नंबर में ऐसा नहीं है। अमेरिका में एसएसएन का इस्तेमाल किसी खास मकसद (गरीबी को कम करने) के अलावा दूसरे मामलों में नहीं होता है। इसके लिए दूसरे पहचान पत्र को तरजीह दी जाती है।
आधार कार्ड और एसएसएन दोनों में ही निजी जानकारियों की सुरक्षा गारंटी नहीं
आधार कार्ड में आपके निजी जानकारियों को किसी गलत हाथ में जाने से बचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ ऐसा ही सामाजिक सुरक्षा नंबर (एसएसएन) में भी है। अमेरिकी सरकार ने साल 1974 में निजता एक्ट के तहत एक कानून पास किया कि किसी भी संकट की स्थिति में एसएसएन को वैश्विक पहचान के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।
आधार कार्ड का डिजाइन निजी कंपनियों के इस्तेमाल के लायक एसएसएन को नहीं
हमारे देश में आधार कार्ड का डिजाइन ऐसा तैयार किया गया है जिसको निजी कंपनियां अपने हितों के लिए आसानी से इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन एसएसएन में ऐसा नहीं है। फिर भी अमेरिका में हर साल लगभग 90 लाख लोगों की जानकारी इसके माध्यम से लीक हो जाती है।
आधार कार्ड बिना किसी कानून के लेकिन एसएसएन कानून के तहत
हमारे देश में आधार कार्ड किसी कानून के जरिए नहीं लाया गया है। साल 2009 में तत्कालीन मौजूदा सरकार ने इसको लागू करने का फैसला किया था। संसद में इसे किसी कानून के तहत नहीं बनाया गया था। जबकि अमेरिका में एसएसएन साल 1936 में सामाजिक सुरक्षा एक्ट के तहत लाया गया था।
आधार कार्ड का इस्तेमाल हर जगह लेकिन एसएसएन का नहीं
आधार कार्ड को आप देश में बैंकिंग, नौकरी, फोन, शिक्षा, कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन एसएसएन में ऐसा नहीं है। अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा नंबर का इस्तेमाल आप हर जगह नहीं कर सकते। वहां कई चीजों में इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है।
सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच इसपर फैसला करेगी की निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। इस बेंच में चीफ जस्टिस जे एस खेहर के अलावा, जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।
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