राहुल गांधी ने कविता के जरिए बढ़ाया किसानों का हौसला, लिखा- अन्नदाता तुम बढ़े चलो

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन को एक महीना बीत चुका है. दिल्ली की सीमाओं पर आज भी हजारों की संख्या में किसान डटे हैं.

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन को एक महीना बीत चुका है. दिल्ली की सीमाओं पर आज भी हजारों की संख्या में किसान डटे हैं.

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Dalchand Kumar
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राहुल गांधी ने की कविता के जरिए किसानों का हौसला बढ़ाने की कोशिश( Photo Credit : फाइल फोटो)

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आंदोलन को एक महीना बीत चुका है. दिल्ली की सीमाओं पर आज भी हजारों की संख्या में किसान डटे हैं. कड़ाके की ठंड और कोरोना के खौफ के बीच किसानों का आंदोलन जारी है. किसान कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर पड़े हुए हैं, उन्हें विपक्षी दल भी लगतार समर्थन दे रहे हैं. इसी कड़ी में राहुल गांधी ने आंदोलनरत किसानों का कविता के जरिए से हौसला बढ़ाने की कोशिश की है.

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में वीर रस की कविता लिखी है. राहुल ने ट्वीट किया, ' वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो, वॉटर गन की बौछार हो, या गीदड़ भभकी हजार हो, तुम निडर डरो नहीं, तुम निडर डटो वहीं, वीर तुम बढ़े चलो, अन्नदाता तुम बढ़े चलो.'

बता दें कि किसानों के मसले पर राहुल गांधी केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मुखर हैं. वो भी लगातार किसानों का समर्थन करते हुए नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. इससे पहले शनिवार को भी उन्होंने किसानों के मसले पर सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा था, 'मिट्टी का कण-कण गूंज रहा है, सरकार को सुनना पड़ेगा.' उल्लेखनीय है कि किसान पिछले 32 दिन से कृषि कानूनों का विरोध करते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली की तीन सीमाओं - सिंघू, टीकरी और गाजीपुर में हजारों किसान एक महीने से डेरा डाले हुए हैं.

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वे सितंबर में लागू तीन कृषि कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने और एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं.हालांकि केंद्र सरकार भी किसानों से वार्ता करके समाधान का हल निकालने की कोशिश कर रही है. सरकार की ओर से किसानों को बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया था, जिसे किसान संगठनों ने स्वीकार कर लिया है. संगठनों ने अगले दौर की वार्ता के लिए 29 दिसंबर की तारीख का प्रस्ताव दिया है.

राहुल गांधी rahul gandhi farmers-protest
      
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