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लोकसभा चुनाव

असहमति जरूरी, लेकिन साथ रहना उससे ज्यादा जरूरी: राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित किया। 'पद्मावत' को लेकर जारी हिंसा के बीच राष्ट्रपति ने असहमति के दौरान उदारता की जरूरत पर बल दिया।

Updated on: 25 Jan 2018, 08:56 PM

नई दिल्ली:

भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित किया। 'पद्मावत' को लेकर जारी हिंसा के बीच राष्ट्रपति ने असहमति के दौरान उदारता की जरूरत पर बल दिया।

राष्ट्रपति ने कहा, 'मुहल्ले-गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही, एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखते हैं। किसी दूसरे नागरिक की गरिमा, और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी, हम असहमत हो सकते हैं। ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही, भाईचारा कहते हैं।'

उन्होंने कहा कि 26 जनवरी, 1950 को, भारत एक गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ। हमारे राष्ट्र निर्माण की यात्रा में, यह दूसरा महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। हमें आजादी हासिल किये हुए, लगभग ढाई साल ही बीते थे। लेकिन संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में, ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों। समता या बराबरी के इस आदर्श ने, आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की। एक तीसरा आदर्श भी था, जो हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को, और हमारे सपनों के भारत को, सार्थक बनाता था। यह था, बंधुता या भाईचारे का आदर्श! मिलजुलकर रहने और काम करने का आदर्श!

राष्ट्रपति ने कहा, 'जैसा कि हम जानते हैं, हमारी आजादी, हमें एक कठिन संघर्ष के बाद मिली थी। इस संग्राम में, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था। उन स्वतंत्रता सेनानियों ने, देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। बहुतों ने तो अपने प्राणों की आहुति दे दी। आज़ादी के सपने से पूरी तरह प्रेरित हो कर, महात्मा गाँधी के नेतृत्व में, ये महान सेनानी, मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो सकते थे। उनका लक्ष्य उन्हे प्राप्त हो चुका था। लेकिन, उन्होंने पल भर भी आराम नहीं किया। वे रुके नहीं, बल्कि दुगने उत्साह के साथ, संविधान बनाने के महत्त्वपूर्ण कार्य में, पूरी निष्ठा के साथ जुट गए। उनकी नजर में, हमारा संविधान, हमारे नए राष्ट्र के लिए केवल एक बुनियादी कानून ही नहीं था, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज भी था।'

इनोवेशन पर जोर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं। इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें एक जुनून के साथ, जुट जाना चाहिए।

शिक्षा प्रणाली को लेकर राष्ट्रपति ने कहा, 'हमारी शिक्षा-प्रणाली में रटकर याद करने और सुनाने के बजाय, बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।'

राष्ट्रपति ने कहा, 'जिस तरह से मां बच्चों के पेट भरने के लिए परेशान रहती है उसी तरह हमारे देश के किसान अन्न उपजाने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं।' 'हम सबका सपना है कि भारत एक विकसित देश बने। उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। हमारे युवा अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर देश को आगे ले जाएंगे।'

उन्होंने कहा, 'सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के जीवन को खुशहाल बनाना ही हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है। गरीबी के अभिशाप को, कम-से-कम समय में, जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है। यह कर्तव्य पूरा करके ही हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं।'

उन्होंने कहा, 'वर्ष 2020 में हमारे गणतन्त्र को 70 वर्ष हो जाएंगे। 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे। ये महत्वपूर्ण अवसर हैं। स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए, हमें एक बेहतर भारत के लिए प्रयास करना है।' 

राष्ट्रपति ने कहा कि हमे ऐसे आधुनिक भारत की रचना करनी है जिसमें हर किसी के टैलेंट का समान अवसर मिले। हमे सभी के लिए विकास के अवसर देना ही हमारा लोकतंत्र है।

उन्होंने कहा, 'प्यारे देशवासियों को हम सब का सपना है कि भारत विकसित देश बने। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे देश के युवा ऐसा जरुर करेंगे।'

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