तेज़ प्रताप को क्यों आया ग़ुस्सा, राजनीतिक विरासत के लड़ाई की शुरूआत तो नहीं?
जिस तेज़ प्रताप ने गांधी मैदान में राजद की रैली में शंखनाद कर अपने छोटे भाई को गद्दी देने की बात कही, आज क्या हुआ?
पटना:
पिछले दो दिनों से लालू यादव के घर में राजनीतिक विरासत को लेकर महाभारत छिड़ी है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है आख़िर क्यों?
जिस तेज़ प्रताप ने गांधी मैदान में राजद की रैली में शंखनाद कर अपने छोटे भाई को गद्दी देने की बात कही, आज क्या हुआ? आखिर लालू के बड़े बेटे को किस बात ने परेशान कर दिया। कहीं तेज़ प्रताप को अब अपने अस्तित्व बचाने की चिंता तो नहीं सताने लगी है।
दरअसल पूरी लड़ाई के केंद्र में राजेंद्र पासवान नाम का एक कार्यकर्ता है, जो तेज़ प्रताप का बेहद क़रीबी है। तेज़ प्रताप राजेंद्र पासवान को संगठन में जगह दिलाना चाह रहे थे लेकिन पासवान चूंकि नए सदस्य हैं तो उन्हें पद दिया नहीं जा रहा था।
राजेंद्र पासवान बक्सर जिले से आते हैं और तेज़ प्रताप यादव के क़रीबी माने जाते हैं। तेज़ प्रताप राजेंद्र पासवान को प्रदेश महासचिव बनवाना चाहते थे।
तेज़ प्रताप ने इसके लिए प्रदेश नेतृत्व पर दबाव बनाया था लेकिन तेजस्वी नियमों के तहत चलना चाहते थे।
तेजस्वी को डर था की राज्य कमिटी का गठन होने के बाद राजेंद्र पासवान के मनोनयन से दुसरे नेताओं की नाराजगी बढ़ सकती है लेकिन बावजूद इसके तेजप्रताप के दबाव में राजेंद्र पासवान को पिछले 7 जून को प्रदेश महासचिव मनोनीत कर दिया गया।
मगर राजेंद्र पासवान को महासचिव बनाने में हुई इस देरी ने तेज़ प्रताप को परेशान कर दिया कि आखिर उनकी बात को तरजीह क्यों नहीं दी गयी?
बता दें कि तेज़ प्रताप यादव के लगभग सभी कार्यक्रमों में राजेंद्र पासवान की मौजूदगी देखी जाती रही है। छात्र राजद से लेकर तेज़ प्रताप के सामाजिक संगठन DSS के कार्यक्रमों में भी राजेंद्र पासवान बढ़ चढ़कर शामिल रहे हैं।
अपने क़रीबी नेता को पार्टी में एक पद दिलवाने में तेज़ प्रताप को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा उससे तेज़ को इस बात का अहसास हो गया की पार्टी में उनकी पूछ ना के बराबर है।
तेजस्वी यादव छोटे भाई होते हुए पार्टी पर आज की तारीख में एकाधिकार रखते हैं और अब पार्टी के दुसरे नेता भी तेज़ प्रताप की बात को तरजीह नहीं दे रहे।
प्रदेश अध्यक्ष रामचन्द्र पूर्वे ने जब तेज़ प्रताप की बात नही मानी तो तेज़ बेकाबू हो गए और मुद्दा विवाद बन कर सबके सामने आ गया।
तेजस्वी यादव अब भले ही सफाई दे रहे हों मगर उनकी बातों से साफ है कि तेज़ के गुस्से ने एक बगावत की चिंगारी भड़काई है।
बस अब डर इस इस बात का है कि भविष्य में कही यह चिंगारी फिर से बढ़ी तो लालू का राजनीतिक कुनबा कहीं वक़्त से पहले ही महत्वकांक्षा की भेंट न चढ़ जाए।
और पढ़ें- तेज प्रताप मेरे भाई और मार्गदर्शक, फूट का सवाल नहीं: तेजस्वी यादव
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