तेज प्रताप ने आरजेडी नेता राम चंद्र पूर्वे पर साधा निशाना, कहा- लालू के दोनों लालों को लड़ाने की साजिश
तेज प्रताप यादव ने कहा है कि, मुझे मेरे भाई तेजस्वी और पिता लालू यादव से कोई शिकायत या दिक्कत नहीं लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता साजिश कर रहे हैं और मेरी बातें नहीं सुनते।
नई दिल्ली:
लालू यादव के परिवार में फूट की खबरों को लेकर उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने अब सफाई दी है। तेज प्रताप यादव ने कहा है कि, मुझे मेरे भाई तेजस्वी और पिता लालू यादव से कोई शिकायत या दिक्कत नहीं लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता साजिश कर रहे हैं और मेरी बातें नहीं सुनते।
तेजप्रताप ने पार्टी के वरिष्ठ नेता और एमएलसी रामचंद्र पूर्वे पर निशाना साधते हुए कहा, 'एमएलसी बनने के बाद यह पद उनके सिर पर चढ़ गया है। पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं की बात वो नहीं सुनते और लोगों को भी मुझसे मिलने नहीं देते।'
गौरतलब है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की जगह छोटे बेटे तेजस्वी का ज्यादा तवज्जो दी जाती है और पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता तक सिर्फ उन्हीं की बातें सुनते हैं।
वहीं राज्य में सत्ताधारी पार्टी जेडीयू ने लालू परिवार से आ रही इन फूट की खबरों पर चुटकी ली है। पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा, 'बड़े बेटे होने के बावजूद तेज प्रताप को हमेशा से पार्टी में दबाया गया। अब ये और कुछ नहीं पार्टी में कुर्सी की लड़ाई है जो उनके बयानों से साफ होता है।'
इससे पहले तेज प्रताप ने कहा, 'पार्टी के लोग मेरा फोन नहीं उठाते हैं और कहते हैं कि कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें ऐसा करने को कहा है। मुझमें और मेरे छोटे भाई तेजस्वी यादव में कोई फर्क नहीं है। ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर निकालना होगा जो हम दोनों भाइयों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता ऐसे लोगों को ढूंढ़ें और पार्टी से बर्खास्त करें।'
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उन्होंने कहा था, 'हमें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से असमाजिक तत्वों को निकाल फेकना होगा। राजेंद्र पासवान जैसे लोगों ने हमारी पार्टी के लिए काफी मेहनत की है। इस बारे में लालू यादव जी, राबड़ी जी और तेजस्वी से मेरे बात करने के बाद उन्हें पार्टी में स्थान दिया गया। इतनी देरी क्यों हुई?'
तेज प्रताप यादव ने शनिवार को ट्वीट कर इशारा किया था कि वो राजनीत से संन्यास लेकर द्वारिका जा सकते हैं।
तेज प्रताप ने लिखा, 'मेरा सोंचना है कि मैं अर्जुन को हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठाऊं और खुद द्वारका चला जाऊं। अब कुछेक 'चुग्लों' को कष्ट है कि कहीं मैं किंग मेकर न कहलाऊं।'
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