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उमेश चतुर्वेदी( Photo Credit : सोशल मीडिया फेसबुक)
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उमेश चतुर्वेदी( Photo Credit : सोशल मीडिया फेसबुक)
चालू साल 1 जुलाई को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ है. इस अहम वक्त को मनाने के लिए चीन में तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और खुशी का माहौल तैयार हो रहा है. उधर, भारतीय लोगों की नजर में विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश की सत्तारूढ़ पार्टी सीपीसी की छवि कैसी है और आधुनिक चीन के लिए उसका मुख्य योगदान क्या है, इस मुद्दे को लेकर हाल ही में चाइना मीडिया ग्रुप के हिंदी विभाग ने दिल्ली संवाददाता संघ के उपाध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार उमेश चतुर्वेदी के साथ एक खास बातचीत की. उमेश जी के विचार में जब तक चीन विस्तारवादी नीति बनाए रखेगा, तब तक दोनों देशों के बीच सम्बंध अच्छे नहीं रह सकते हैं. उन्होंने आगे बताया कि सीपीसी के नेतृत्व में चीन में दीर्घकालिक राजनीतिक स्थिरता कायम है. यह चीन में हुए आर्थिक कायापलट की गारंटी है.
उमेश चतुर्वेदी ने बताया कि चीन की एक बड़ी विशेषता है, उसकी विशाल आबादी, व्यापक जातियां और संस्कृति की विविधता. विभिन्न संस्कृतियों वाले देश के बावजूद भी सीपीसी के नेतृत्व में चीन लगातार एक सूत्र में बंधे हुए हैं. यानी सीपीसी ने विभिन्न संस्कृतियों में चीन को एकजुट बनाकर रखा है. यही सीपीसी की एक सबसे बड़ी उपलब्धि है. उसने न सिर्फ चीन को एक बनाकर रखा है, बल्कि पिछली सदी के 70 वाले दशक के अंत में अर्थव्यवस्था खोलने की शुरुआत की. सुधार और अर्थव्यवस्था को खोलकर चीन को आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में सीपीसी ने शानदार काम किया है.
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इस मार्च में सीपीसी महासचिव और राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने घोषणा की कि चीन में अति गरीबी मिटाई जा चुकी है. इसकी चर्चा में उमेश ने बताया कि इसका स्वागत किया जाना चाहिए और दोनों देश इस क्षेत्र में सहयोग कर सकते हैं और हाथों में हाथ मिलाकर सहयोग करना चाहिए. उमेश ने बताया कि गरीबी किसी जाति विशेष की नहीं होती है और इसकी कोई सीमा भी नहीं होती. चीन और भारत की अपनी-अपनी कमियां हैं. वे एक-दूसरे को मदद दे सकते हैं. उमेश चतुर्वेदी ने ये भी बताया कि, चीन को लेकर भारतीय लोग सशंकित हैं.
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वर्तमान चीन-भारत संबंधों में कुछ दिक्कतें हैं, लेकिन ये अस्थायी होंगी. 1600 साल पहले के मशहूर चीनी भिक्षु फाह्यान ने भारत की तीर्थयात्रा की थी. तब से दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक लेनदेन का विस्तार होता रहा है. ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए, तो भारत और चीन एक साथ आ सकते हैं. इधर के कुछ सालों में सीपीसी ने वैदेशिक संबंधों के निपटारे में यह सुझाव रखा कि मानव समुदाय के साझे भविष्य का निर्माण करना होगा. इसके प्रति उमेश जी ने बताया कि यह बहुत अच्छा विचार है और ऐसा होना चाहिए. न सिर्फ सीपीसी, बल्कि पूरी दुनिया को सोचना चाहिए कि आने वाले भविष्य में मानवता के लिए क्या काम किया जाए. हमें भू-राजनीतिक स्थितियों को एक किनारे पर रखना होगा.
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विभिन्न देशों के लोगों के धर्म शायद अलग हों, विभिन्न देशों के विकास के रास्ते शायद अलग हों, संस्कृतियां व परंपराएं अलग हों, लेकिन हम कई गंभीर वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जैसे प्रकृति को बचाना, अंधाधुंध औद्योगीकरण के चलते लगातार पर्यावरण का नुकसान, जलवायु परिवर्तन और वर्तमान में चल रही कोविड-19 महामारी आदि. चीन-भारत संबंधों की चर्चा में उमेश आशावान लगते हैं. उन्होंने बताया कि दोनों देश बेहद नजदीकी पड़ोसी हैं. आप सब बदल सकते हैं, पड़ोसी को नहीं बदल सकते. पड़ोसी के साथ सबसे अच्छा तरीका है कि पड़ोसी के साथ अच्छे से रहें. पूरी दुनिया मानती है कि 21वीं सदी चीन और भारत की है, यह गौर करने वाली बात है.
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