पीएम का ग्लासगो दौरा बेहद अहम, भारत होगा प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करने में सक्षम
आगामी 31 अक्टूबर को ग्लासगो में COP26 सम्मेलन होने जा रहा है. जिसमें भारत के प्रधानमंत्री समेत 120 देश के नेता भाग लेने वाले हैं. बताया जा रहा है प्रधानमंत्री का गलासगो दौरा बेहद अहम होगा. क्योंकि पीएम के साथ अमेरिका के राष्ट्रपित जो बाइडेन भी सम्मेल
highlights
- ग्लासगो में 31 अक्टूबर को होने वाला है COP26 सम्मेलन
- मोदी के साथ बाइडेन भी करेंगे सम्मेलन में शिरकत
- सम्मेलन में जुट रहें हैं 120 देश के नेता
नई दिल्ली :
आगामी 31 अक्टूबर को ग्लासगो में COP26 सम्मेलन होने जा रहा है. जिसमें भारत के प्रधानमंत्री समेत 120 देश के नेता भाग लेने वाले हैं. बताया जा रहा है प्रधानमंत्री का गलासगो दौरा बेहद अहम होगा. क्योंकि पीएम के साथ अमेरिका के राष्ट्रपित जो बाइडेन भी सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं. सम्मेमल में विदेश नीति को लेकर कई अहम फैसले आने की उम्मीद है. खासकर यह सम्मेलन 13 दिनों तक चलेगा. इसलिए इस सम्मेलन को cop नाम से जाना जाता है. जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले ख़तरे से निपटने पर दुनिया एक साथ मिल-बैठकर क़दम उठा सके. इसको लेकर विभिन्न देश के नेताओं से PM मोदी बात करेंगे.
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आपको बता दें कि दिल्ली, उत्तराखंड से लेकर केरल तक, गुजरात से लेकर पश्चिम बंगाल और असम तक के लोगों ने बदलते तापमान की वजह से होने वाले इन बदलावों को काफ़ी क़रीब से महसूस किया है. खबरों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के खतरे केवल भारत में ही नहीं है. बल्कि अन्य देश इससे अछूते नहीं है. इसी को लेकर ग्लासगो सम्मेलन में अहम फैसले होने की संभावना है. सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव भी हिस्सा लेने वाले हैं.
ग्लासगो में क्या होगा?
ग्लासगो में COP26 सम्मेलन 31 अक्टूबर से होने वाला है. 13 दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन को COP सम्मेलन कहा जाता है, जिसका मतलब - 'कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़' है. इस बार इस सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन आने वाले हैं. भारत की तरफ़ से पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव तो रहेंगे ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें हिस्सा लेने वाले हैं. इस वजह से भारत के संदर्भ में ये सम्मेलन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. ग्लासगो का एजेंडा वैसे तो बहुत बड़ा है, लेकिन उनमें से सबसे अहम और महत्वपूर्ण है पेरिस समझौते के नियमों को अंतिम रूप देना. आपको बता दें कि साल 2015 में क्लामेट चेंज को लेकर पेरिस समझौते हुआ था. इसका मक़सद कार्बन गैसों का उत्सर्जन कम कर दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान को रोकना था ताकि ये 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा ना बढ़ने पाए. इसके बाद दुनिया के देशों ने स्वेच्छा से अपने लिए लक्ष्य तय किए थे.
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