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सास ससुर के घर में अब बहू को भी रहने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के किसी भी रिश्तेदार का मकान, जिसमें महिला कभी घर की तरह रही हो, कानून के तहत ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ माना जाएगा.

Updated on: 16 Oct 2020, 10:14 AM

नई दिल्ली:

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अहम फैसले में ये साफ किया है कि सास-ससुर के मालिकाना हक वाले मकान में विवाहिता को रहने का अधिकार है, भले ही उसके पति का उस सम्पत्ति में वारिसाना हक हो या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति के किसी भी रिश्तेदार का मकान, जिसमें महिला कभी घर की तरह रही हो, कानून के तहत ‘शेयर्ड हाउसहोल्ड’ माना जाएगा.

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इससे पहले 2006 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विवाहित महिला सिर्फ उसी उस घर में रहने की अधिकारी है, जिसमें उसके पति का मालिकाना हक है या संयुक्त परिवार होने के नाते उसके पति का उस घर में हिस्सा है. 2006 के फैसले के मुताबिक, महिला पति के अधिकार वाले मकान में आसरा मांग सकती है, लेकिन महिला के सास-ससुर जिस घर के मालिक हों, वहां इस तरह का दावा नहीं कर सकती.

लेकिन अब उच्चतम न्यायालय ने 'शेयर होल्डर्स 'की परिभाषा को विस्तार देते हुए कहा है कि यदि सास ससुर के नाम से प्रॉपर्टी है और महिला वहां शादी के बाद से रहती आई है तो उसका उस घर में भी रहने का हक बनता है. न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कानून के तहत 'साझा घर' की परिभाषा की व्याख्या वाले पहले के फैसले को 'गलत कानून' करार दिया और इसे दरकिनार कर दिया.

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शीर्ष अदालत का फैसला 76 वर्षीय दिल्ली निवासी सतीश चंदर आहूजा की याचिका पर आई जिन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2019 में निचली अदालत के एक फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें आहूजा की पुत्रवधू को उनका परिसर खाली करने का आदेश दिया गया था. आहूजा ने कहा था कि संपत्ति उनकी है और इस पर न तो उनके बेटे या न ही उनकी पुत्रवधू का मालिकाना हक है जिसके बाद अदालत ने महिला को परिसर खाली करने के आदेश दिए थे.