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दिल्ली में अब LG ही होंगे सरकार- केंद्र सरकार ने लागू किया GNCTD Act

अब दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा यानी बगैर एलजी (LG) के मंजूरी के कार्यकारी कोई कदम नहीं उठाया जा सकेगा.

Updated on: 28 Apr 2021, 02:26 PM

highlights

  • दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 प्रभाव में आया
  • बगैर एलजी (LG) के मंजूरी के कार्यकारी कोई कदम नहीं उठाया जा सकेगा
  • उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर तनातनी चलती रहती है

नई दिल्ली:

केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) ने दिल्ली के उपराज्यपाल की ताकत बढ़ा दी है. अब दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा यानी बगैर एलजी (LG) के मंजूरी के कार्यकारी कोई कदम नहीं उठाया जा सकेगा. केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 (GNCTD Act) को मंजूरी दिए जाने बाद इसे लेकर अधिसूचना जारी की है. इस अधिसूचना के मुताबिक दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आ गया है. कानून में किए गए संशोधन के अनुसार, अब सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे. 

27 अप्रैल से लागू हुई अधिसूचना
दिल्ली में कोरोना संक्रमण से बिगड़ती स्थिति के बीच केंद्र सरकार ने दिल्ली में GNTCD कानून को अमल में लाने की अधिसूचना जारी कर दी है. गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचना में कहा गया है, 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, 27 अप्रैल से अधिसूचित किया जाता है; अब दिल्ली में सरकार का अर्थ उपराज्यपाल है.' बजट सत्र के दौरान 24 मार्च को यह राज्यसभा से पास हुआ था. केंद्र सरकार के मुताबिक इस कानून में दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में 'सरकार' का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल से होगा. इसमें दिल्ली की स्थिति संघराज्य क्षेत्र की होगी जिससे विधायी उपबंधों के निर्वाचन में अस्पष्टताओं पर ध्यान दिया जा सके. इस संबंध में धारा 21 में एक उपधारा अमल में आएगी.

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कानून के तहत ये होंगे बदलाव
कानून में किए गए संशोधन के अनुसार, अब सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे. दिल्ली के केंद्रशासित प्रदेश होने के चलते उपराज्यपाल को कई शक्तियां मिली हुई हैं. दिल्ली और केंद्र में अलग-अलग सरकार होने के चलते उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर तनातनी चलती ही रहती है. कानून कहा गया है कि उपराज्यपाल को आवश्यक रूप से संविधान के अनुच्छेद 239क के खंड 4 के अधीन सौंपी गई शक्ति का उपयोग करने का अवसर मामलों में चयनित प्रवर्ग में दिया जा सके. कानून के उद्देश्यों में कहा गया है कि उक्त कानून विधान मंडल और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का संवर्द्धन करेगा तथा निर्वाचित सरकार एवं राज्यपालों के उत्तरदायित्वों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप परिभाषित करेगा.

दिल्ली सरकार ने कानून का किया था विरोध
जब इस विधेयक को राज्यसभा में पारित किया गया था, तभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे लोकतंत्र के लिए दुखद दिन करार दिया था. दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया था कि दिल्ली सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है. दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया ने एक फैसले का जिक्र कर केंद्र के कानून का विरोध किया था. बता दें सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा थाकि सरकार जनता के प्रति जवाबदेह हो.

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यह था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जनता के लिए सरकार को उपलब्ध होना चाहिए और चुनी हुई सरकार ही सर्वोच्च है. मंत्रिमंडल के पास ही असली शक्ति होती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संघीय ढांचों में राज्यों को भी स्वतंत्रता मिली है. तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि शक्तियों में समन्वय हो. शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती है. बेंच ने कहा था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना मुमकिन नहीं है. दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है और राज्य सरकार को एक्सक्लूसिव अधिकार नहीं दिए जा सकते हैं. कहा गया था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं. कानून बनाने से पहले और बाद में उसे एलजी को दिखाना होगा.लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं. संविधान का पालन होना चाहिए.