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चीन के हर छोटे-बड़े मूवमेंट पर रहेगी पैनी नजर, LAC पर लगेगा सर्विलांस सिस्टम

अग्रिम रक्षा पंक्ति सुदृढ़ करने के साथ-साथ अब भारत उत्तरी सीमा की निगरानी की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने की दिशा में सर्विलांस के क्षेत्र में कदम उठाने जा रहा है.

Updated on: 08 Feb 2021, 09:01 AM

highlights

  • इजरायल से तीन से चार हेरॉन यूएवी को लीज पर लिया जाएगा
  • साथ ही सेंसर और छोटे ड्रोन भी चीन की सीमा पर होंगे तैनात
  • एलओसी की तरह एलएसी पर हर पल नहीं रखी जा सकती नजर

नई दिल्ली:

चीनी सैनिकों से गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष के बाद मोदी सरकार (Modi Government) वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा पंक्ति मजबूत बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रही है. कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य स्तर की वार्ता के बावजूद LAC से दोनों देशों के सैनिकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. ऐसे में अग्रिम रक्षा पंक्ति सुदृढ़ करने के साथ-साथ अब भारत उत्तरी सीमा की निगरानी की व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने की दिशा में सर्विलांस के क्षेत्र में कदम उठाने जा रहा है. इसके तहत सीमा पर अब ड्रोन, सेंसर, टोही विमान और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरणों के जरिए पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की हरकतों पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाएगी. निगरानी क्षमता को इतना बड़ा बूस्ट देने के पीछे का मकसद घुसपैठ की हर कोशिश पर हर पल गहरी नजर रखना है.

एलओसी की तरह एलएसी पर नहीं रखी जा सकती नजर
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि एलएसी को पाकिस्तान के साथ 778 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (एलओसी) की तरह लगातार चौकसी नहीं की जा सकती है. ऐसे में एलएसी के साथ वास्तविक समय की जानकारी के लिए मौजूदा निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है. खासकर यह देखते हुए कि पिछले साल मई महीने में पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष के बाद चीन अपनी सीमा में तेजी से आधारभूत संरचना तैयार करने में जुटा है. यही कारण है कि भारत ने भी एलएससी पर निगरानी और खुफिया जानकारियां एकत्र करने के तंत्र को उच्च श्रेणी का बनाने का फैसला किया है. रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया, 'पाकिस्तान के साथ लगने वाली 778 किमी लंबी नियंत्रण रेखा (LOC) की तरह ही एलएसी पर भी लगातार सैनिक तैनात नहीं किए जा सकते. इस कारण मौजूदा निगरानी क्षमता को इतना अपग्रेड करने की दरकार है कि वहां पल-पल की गतिविधियों की खबर मिलती रहे.'

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इन साधनों पर जोर
सूत्रों ने बताया कि ऊंचाई वाले इलाकों पर नजर बनाए रखने के लिए छोटे-छोटे ड्रोनों से लेकर काफी दूर तक निगरानी में सक्षम कैमरों और दूर से संचालित होने वाले एयक्राफ्ट सिस्टम से निगरानी क्षमता बढ़ाने की योजना है. साथ ही इजरायल से तीन से चार हेरॉन यूएवी को लीज पर लेने की भी बात चल रही है. इसके अलावा, वायुसेना के लिए हैरॉप कमिकेज अटैक ड्रोन भी खरीदे जाने हैं. गौरतलब है कि सेना ने पिछले महीने एक भारतीय कंपनी के साथ 140 करोड़ रुपये की डील पर भी हस्ताक्षर किए हैं. इस डील के तहत अडवांस वर्जन के स्विच ड्रोन खरीदे जाएंगे. एक सूत्र ने कहा, 'ऐसे ड्रोनों के आने से रणनीतिक स्तर पर हमारी निगारानी प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा. एलएसी पर बटालियन कमांडरों और सैन्य टुकड़ियों को पल-पल की स्पष्ट तस्वीरें मिलेंगी.' रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने बॉर्डर ऑब्जर्वेशन एंड सर्विलांस सिस्टम को करीब-करीब विकसित कर लिया है. इसमें कई सेंसर सिस्टम लगे हैं.

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गर्मियों में बढ़ सकता है तनाव
अधिकारियों का कहना है कि चीन ने जिस तरह सैन्य साज-ओ-सामान तैयार किया है और पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक उसने जिस तरह अपनी सेना को तैनात कर रखा है, उससे इस बार गर्मियों में तनाव और बढ़ने की आशंका है. ध्यान रहे कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में बीते साल 15 जून को पीएलए के जवानों ने भारतीय सैनिकों पर धोखे से हमला कर दिया. इस घटना में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए जबकि चीन के 40 से ज्यादा सैनिकों की मारे जाने की खबर है. हालांकि चीन ने अब तक मारे गए अपने सैनिकों की संख्या की पुष्टि नहीं की है. इस हिंसक झड़प के बाद भारत ने एलएसी पर चीन के प्रति अपने रवैये में बड़ा बदलाव करते हुए कई रणनीतिक चोटियों पर कब्जा कर लिया. लंबे चले सैन्य तनाव को खत्म करने के लिए भारत और चीन के बीच अब तक कई दौर की बातचीत हो चुकी है. इनमें बनी सहमतियों के मुताबिक, कुछ जगहों से भारत और चीन के सैनिक थोड़ा पीछे भी हटे हैं, लेकिन परिस्थतियों में बहुत बदलाव नहीं आया है.