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'मीडिया को भी उतनी ही आजादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को'

जस्टिस के एम जोसेफ ने तो यहां तक कह दिया कि मीडिया की आजादी बेलगाम नहीं हो सकती. मीडिया को भी उतनी ही आजादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को.

Updated on: 15 Sep 2020, 03:01 PM

नई दिल्ली:

सिविल सर्विसेज में मुस्लिम समुदाय या जामिया के छात्रों की भागीदारी को लेकर सुदर्शन टीवी के विवादित कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने चैनल के प्रोग्राम के कंटेंट पर गहरी नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने सुर्दशन टीवी के प्रोग्राम को विषैला और समाज को बांटने वाला करार दिया है. जस्टिस के एम जोसेफ ने तो यहां तक कह दिया कि मीडिया की आजादी बेलगाम नहीं हो सकती. मीडिया को भी उतनी ही आजादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मामले में कहा कि इस प्रोग्राम में एंकर की दिक्कत ही यही है कि यूपीएससी में एक समुदाय विशेष के लोगों की एंट्री हो रही है. इस तरह के प्रोग्राम देश की स्थिरता के लिए खतरा है. यूपीएससी एग्ज़ाम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करने वाले हैं. क्या इससे ज़्यादा आपत्तिजनक कोई बात हो सकती है! जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक ऐसी परीक्षा जिसमे सबको समान टेस्ट, इंटरव्यू का मौका मिलता है, उसमे एक समुदाय की भागीदारी को लेकर ऐसे सवाल खड़े किए जाने का क्या मतलब है? बगैर किसी तथ्य के ऐसे आरोपों की इजाज़त कैसे दी जा सकती है!

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इसके साथ ही कोर्ट ने सुर्दशन टीवी के प्रोग्राम को विषैला और समाज को बांटने वाला करार दिया. जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा, मीडिया को उतनी ही आजादी हासिल है, जितनी देश के दूसरे नागरिकों को. मीडिया की आजादी बेलगाम नहीं हो सकती. आप टीवी डिबेट का तरीका देखिए. एंकर उन गेस्ट को म्यूट कर देते है, जिनकी राय उनसे अलग होती है. ज़्यादातर वक़्त स्क्रीन पर सिर्फ एंकर ही बोलते हैं.

जस्टिस जोसेफ़ ने कहा कि विजुअल मीडिया के मालिकाना हक़, कंपनी का पूरा शेयर होल्डिंग पैटर्न, रेवेन्यु मॉडल की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि ये तय हो सके कि सरकार किसी संस्थान को ज़्यादा विज्ञापन दे रही है या किसी को कम. गौरतलब है कि पिछले दिनों सूचना प्रसारण मंत्रालय ने सुदर्शन टीवी के विवादित कार्यक्रम को सशर्त इजाज़त दे दी थी कि कार्यक्रम द्वारा प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करने पर उसे क़ानूनी कार्रवाई झेलनी होगी.

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इस पर सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस के एम जोसेफ़ ने सख्त नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा कि इस तरह के 'विषैले' प्रोग्राम की इजाजत कैसे दी जा सकती है. कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बीच सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पत्रकार की स्वतंत्रता सुप्रीम है. प्रेस को कंट्रोल करने की कोई भी कोशिश लोकतंत्र के लिए नुकसानदायक साबित होगी. फिर इसके बरक्स एक समानांतर मीडिया भी है जहां लैपटॉप लिए एक शख्स एक बार में लाखों लोगों से संवाद स्थापित कर सकता है.

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सोशल मीडिया की बात नहीं कर रहे हैं. अगर एक जगह रेगुलेशन नहीं हो सकते, तो इसका मतलब यह नहीं कि कहीं भी रेगुलेशन ना हो. जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि मीडिया की आजादी बेलगाम नहीं हो सकती. मीडिया को उतनी ही आजादी हासिल है जितनी देश के किसी दूसरे नागरिक को. कोर्ट ने सुदर्शन टीवी की ओर से पेश हुए वकील श्याम दीवान से कहा कि आपके मुवक्किल देश के साथ गलत कर रहे हैं. उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को सावधानी के साथ अमल में लाने की जरूरत है. उन्हें समझना होगा कि हिंदुस्तान विविध संस्कृतियों का संगम है.