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मद्रास हाईकोर्ट ने बंपर-टू-बंपर बीमा आदेश को स्थगित किया

मद्रास हाईकोर्ट ने बंपर-टू-बंपर बीमा आदेश को स्थगित किया

Updated on: 02 Sep 2021, 07:45 PM

चेन्नई:

मद्रास हाईकोर्ट ने गैर-जीवन बीमा क्षेत्र के निकाय, जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के एक अभ्यावेदन पर सभी नई कारों और दोपहिया वाहनों के लिए पांच साल के अनिवार्य बंपर-टू-बंपर बीमा कवर पर अपने पहले के आदेश को स्थगित कर दिया है।

पिछले महीने, मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में 1 सितंबर, 2021 से बेची जाने वाली सभी नई निजी कारों के लिए महंगा बंपर-टू-बंपर बीमा कवर अनिवार्य कर दिया था।

जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ने अदालत से कहा है कि गाड़ियों के बंपर टू बंपर इंश्योरेंस को लेकर बीमा कंपनियों को बीमा नियामक से मंजूरी मिलने के बाद कंप्यूटर सिस्टम में बदलाव के लिए 90 दिन का समय दिया जाए। इंडस्ट्री अन्य स्पष्टीकरण के साथ यह स्पष्टीकरण भी चाहती है कि क्या यह फैसला अन्य राज्यों में भी लागू होगा।

राज्य सरकार ने 31 अगस्त को एक सकरुलर जारी कर वाहन पंजीकरण कार्यालयों को अदालत के आदेश का पालन करने का आदेश दिया था, जिसमें वाहनों के पंजीकरण के समय नई कारों और दोपहिया वाहनों के लिए बंपर-टू-बम्पर बीमा कवर होना अनिवार्य कर दिया गया था।

वाहन बीमा पॉलिसी के मुख्य रूप से दो भाग हैं - स्वयं की क्षति (क्षति, चोरी के विरुद्ध वाहन का बीमा) और तृतीय पक्ष (थर्ड पार्टी) देयता (तीसरे पक्ष के लिए दायित्व)।

थर्ड पार्टी बीमा कवर अनिवार्य है, जबकि वाहन क्षति के लिए बीमा कवर अनिवार्य नहीं है।

मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश वाहनों के लिए बीमा कवर को अनिवार्य बनाने के लिए है।

बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने 26 अगस्त को एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा था कि एक सितंबर से कोई भी नया वाहन बेचने पर उसका संपूर्ण बीमा (बंपर-टू-बंपर कवर) अनिवार्य रूप से होना चाहिए। यह पांच साल की अवधि के लिए चालक, यात्रियों और वाहन के मालिक को कवर करने वाले बीमा के अतिरिक्त होगा। बंपर-टू-बंपर बीमा में वाहन के फाइबर, धातु और रबड़ के हिस्सों सहित 100 प्रतिशत कवर मिलता है।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि वाहन के मालिक को चालक, यात्रियों, तीसरे पक्ष और खुद के हितों की रक्षा करने में सतर्क रहना चाहिए, ताकि वाहन के मालिक पर अनावश्यक दायित्व थोपने से बचा जा सके। इसने कहा था कि आज की तारीख में बंपर-टू-बंपर पॉलिसी की अनुपलब्धता के कारण इसे आगे बढ़ाने का कोई प्रावधान नहीं है।

कंपनी/प्रतिस्पर्धा/बीमा कानूनों में विशेषज्ञता रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. वरदराजन ने आईएएनएस से कहा, यह एक स्पष्ट रूप से अक्षम्य आदेश (अदालत का आदेश) है और अगर वाहन कंपनी या कोई अन्य पीड़ित पक्ष अपील पर जाता है तो कानूनी जांच नहीं होगी।

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.