Statue Of Unity : देश की एकता के शिल्पी थे सरदार पटेल, जानें पूरा जीवन परिचय
भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue Of Unity) का उनावरण करेंगे.
नई दिल्ली:
भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता. पटेल नवीन भारत के निर्माता थे. राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे. देश के विकास में सरदार वल्लभभाई पटेल के महत्व को सैदव याद रखा जाएगा. देश की आजादी के संघर्ष में उन्होंने जितना योगदान दिया, उससे ज्यादा योगदान उन्होंने स्वतंत्र भारत को एक करने में दिया. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue Of Unity) का उनावरण करेंगे.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया. वास्तव में वे आधुनिक भारत के शिल्पी थे. उनके कठोर व्यक्तित्व में संगठन कुशलता, राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट निष्ठा थी. जिस अदम्य उत्साह असीम शक्ति से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारंभिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया. भारत की स्वतंत्रता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान था.
लेखक रमेश सर्राफ धमोरा के अनुसार सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है. गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की जिम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी. उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी-बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया. देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था. नीतिगत ²ढ़ता के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सरदार और लौह पुरुष की उपाधि दी थी. वल्लभ भाई पटेल ने आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया.
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स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष सरदार पटेल देश के उप-प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, सूचना प्रसारण मंत्री रहे. इस सबसे भी बढ़कर उनकी ख्याति भारत के रजवाड़ों को शांतिपूर्ण तरीके से भारतीय संघ में शामिल करने तथा भारत के राजनीतिक एकीकरण के कारण है. पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया, जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं. उनका अलग झंडा और अलग शासक था.
सरदार पटेल ने आजादी से पहले ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य आरंभ कर दिया था. पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना संभव नहीं होगा. इसके परिणामस्वरूप तीन रियासतें- हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.
15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें भारत संघ में सम्मिलित हो चुकी थीं, जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी. जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब वहां की प्रजा ने विद्रोह कर दिया तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ़ को भी भारत में मिला लिया गया.
जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया. निस्संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था. भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी. महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी, जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे."
लक्षद्वीप समूह को भारत में मिलाने में भी पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आजादी की जानकारी 15 अगस्त, 1947 के कई दिनों बाद मिली. हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है. इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा. इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस लौटना पड़ा.
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि वह तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वह तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें, अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा. जवाहरलाल नेहरू नहीं माने, बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया.
सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे.
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 में नाडियाड गुजरात में हुआ था. उनका जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक जमींदार परिवार में हुआ था. वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे. सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया. 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया. 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली.
सन् 1900 में उन्होंने गोधरा में स्वतंत्र जिला अधिवक्ता कार्यालय की स्थापना की और दो साल बाद खेड़ा जिले के बोरसद नामक स्थान पर चले गए. सरदार पटेल के पिता झबेरभाई एक धर्मपरायण व्यक्ति थे. वल्लभभाई की माता लाड़बाई अपने पति के समान एक धर्मपरायण महिला थीं. वल्लभभाई पांच भाई व एक बहन थी. 1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई. उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी. इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया.
वकालत के पेशे में तरक्की करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने अध्ययन के लिए अगस्त, 1910 में लंदन की यात्रा की. वहां उन्होंने मनोयोग से अध्ययन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए.
गृहमंत्री के रूप में वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आईसीएस) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आईएएस) बनाया. अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा. यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता.
सरदार पटेल क्रांतिकारी नहीं थे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल, महात्मा गांधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे. गांधीजी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला. अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने.
वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई. मार्च 1931 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की. जनवरी, 1932 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया. जुलाई, 1934 में वह रिहा हुए और 1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया.
सन् 1937-1938 में पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे. एक बार फिर गांधीजी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए. अक्टूबर, 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए. 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल प्रमुख उम्मीदवार थे. लेकिन महात्मा गांधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप करके जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया. इस प्रकार यदि घटनाक्रम सामान्य रहता तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते.
31 अक्टूबर, 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया. इसका नाम एकता की मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है. यह मूर्ति स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मीटर) से दुगनी ऊंचाई वाली बनाई जाएगी. इस प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया जाएगा, जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में है. सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी. यह 5 वर्ष में तैयार होनी है.
सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था. उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न दिया गया. वर्ष 2014 में केंद्र की मोदी सरकार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना शुरू किया है.
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