जितिन का ब्रह्म चेतना संवाद अभियान, आलाकमान की बेरुखी... नतीजा सामने
जितिन प्रसाद लंबे समय से ब्राह्मणों के पक्ष में आवाज उठाते आ रहे हैं, लेकिन हाईकमान से उन्हें इसको लेकर कतई कोई प्रोत्साहन नहीं मिला.
highlights
- उत्तर प्रदेश में लगातार किए जा रहे थे नजरअंदाज
- ब्राह्मणों के पक्ष में आवाज उठाने से भी हुई खटपट
- कांग्रेस के लिए हुई यूपी विधानसभा चुनाव की राह कठिन
नई दिल्ली:
अगले साल उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) का भारतीय जनता पार्टी (BJP) में आना अनायस नहीं हुआ है. सबसे पहले तो वह उस जी-23 समूह का हिस्सा रहे, जो कांग्रेस (Congress) में आमूल-चूल बदलाव की मांग लंबे समय से कर रहा है. दूसरा बड़ा कारण है कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति. जितिन प्रसाद लंबे समय से ब्राह्मणों के पक्ष में आवाज उठाते आ रहे हैं, लेकिन हाईकमान से उन्हें इसको लेकर कतई कोई प्रोत्साहन नहीं मिला. हद तो तब हो गई जब जितिन के ब्रह्म चेतना संवाद कार्यक्रम को कांग्रेस आलाकमान और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने उनका निजी मसला बताकर पल्ला झाड़ लिया. बताते हैं कि इसके बाद ही जितिन प्रसाद ने कांग्रेस का हाथ छोड़ने का मन बना लिया था.
ब्रह्म चेतना संवाद मूल में तो नहीं
जितिन प्रसाद से जुड़े कुछ नजदीकी सूत्र बताते हैं कि बीते काफी समय से जितिन प्रसाद ब्राह्मणों के हक में आवाज उठा रहे हैं. हालांकि यह अलग बात है कि तुष्टीकरण खासकर मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाले नेतृत्व से उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा था. यही वजह थी कि जब जितिन ने ब्रह्म चेतना सवांद कार्यक्रम की घोषणा की, तो पार्टी ने इससे किनारा कर लिया. कई नेताओं ने यह तक कहा कि वह उनका अपना निजी मसला है, इससे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है.
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सिंधिया के बाद एक बड़ा झटका
कांग्रेस के जानकार बताते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले जितिन प्रसाद का जाना, कांग्रेस खासकर प्रियंका गांधी के लिए एक बड़ा झटका है. कांग्रेस के लिए यह झटका ठीक मध्य प्रदेश की तरह का साबित होगा, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ झटक बीजेपी का दमान थामा था. इसके बाद सचिन पायलट को लेकर भी कांग्रेस आलाकमान को झटका लगते-लगते रह गया. हालांकि जितिन प्रसाद ने बीजेपी का साथ कर संकेत दे दिए हैं कि कांग्रेस के लिए आने वाला समय खासा चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है. खासकर यह देखते हुए कुछ संयोग अचानक ही सामने आए हैं.
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अगल झटका राजस्थान से तो नहीं
कांग्रेस इस वक्त आंतरिक कलह से बुरी तरह से जूझ रही है. इसमें भी फिलहाल राजस्थान सबसे पहले आता है. वहां एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की कड़वाहट सामने आ चुकी है. सचिन मुखर तौर पर कह चुके हैं कि दस महीने होने को आए हैं, लेकिन किए गए वादों को पूरा नहीं किया गया है. सूत्र इस बार यह भी संकेत दे रहे हैं कि पिछली बार गहलोत के साथ बने रहने वाले कांग्रेसी विधायक भी इस बार सचिन पायलट के साथ आ सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को एक और झटके के लिए तैयार रहना चाहिए. पंजाब तो खैर धधक ही रहा है. संभव है आने वाले समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के लिए दूसरे शरद पवार साबित हो सकते हैं.
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