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74th Independence Day: ये थे भारत की आजादी के निर्णायक आंदोलन

किसी भी देश की आजादी के लिए वहां के क्रांति से परिपूर्ण आंदोलन का अहम योगदान था. ऐसे ही भारत की आजादी में भी कुछ आंदोलन ऐसे थे जिसने अंग्रेजी हुकूम को जड़ से उखाड़ने में महत्वपूर्ण रहा था. देश इसबार 74वां स्वतंत्रता दिवन (74thIndependence Day)मनाने जा रहा है. इस मौके पर हम इसके पीछे के आंदोलन की बात करेंगे और जानेंगे कि आखिर कैसे इन क्रांतिकारी कदमों ने भारत को आजादी की सुबह दिखाई थी.

Updated on: 14 Aug 2020, 05:26 PM

नई दिल्ली:

Independence Day 2020:  किसी भी देश की आजादी के लिए वहां के क्रांति से परिपूर्ण आंदोलन का अहम योगदान था. ऐसे ही भारत की आजादी में भी कुछ आंदोलन ऐसे थे जिसने अंग्रेजी हुकूम को जड़ से उखाड़ने में महत्वपूर्ण रहा था. देश इसबार 74वां स्वतंत्रता दिवन (74thIndependence Day)मनाने जा रहा है. इस मौके पर हम इसके पीछे के आंदोलन की बात करेंगे और जानेंगे कि आखिर कैसे इन क्रांतिकारी कदमों ने भारत को आजादी की सुबह दिखाई थी.

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1. 'भारत छोड़ो आंदोलन'

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाने वाले 'भारत छोड़ो आंदोलन' ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने का काम किया था. यह वह आंदोलन था जिसमें पूरे देश की व्यापक भागीदारी रही थी. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मशहूर घटना काकोरी कांड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त सन 1942 को महात्मा गांधी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ शुरू हुए आंदोलन ने देखते ही देखते ऐसा स्वरूप हासिल कर लिया कि अंग्रेजी सत्ता के दमन के सभी उपाय नाकाफी साबित होने लगे थे. क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया था. 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' के नारे के साथ शुरू हुए आंदोलन के थोड़े ही समय बाद गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ताओं ने हड़तालों और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन को जिंदा रखा.

2. 'अगस्त क्रांति'

'अगस्त क्रांति' भारत से ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की अंतिम और निर्णायक लड़ाई थी, जिसकी कमान कांग्रेस के नौजवान नेताओं के हाथ में आ गई थी. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' के नारे के साथ अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर करने के लिए देश की जनता का आह्वान किया था. इसलिए इसे 'भारत छोड़ो' आंदोलन के रूप में याद किया जाता है. देश की जनता उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंक दिए जाने से ब्रितानी सरकार से नाराज थी. युद्ध के कारण जरूरत की चीजों की कीमतें आसमान छूने लगी थीं. खाने-पीने की वस्तुओं से लेकर सभी मूलभूत चीजों का टोटा पड़ गया था. अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आंदोलन को क्रूरता के साथ दबा दिया, लेकिन इस आंदोलन से एक बात तय हो गया कि भारतीयों को अब पूर्ण आजादी के सिवा कुछ और मंजूर नहीं था और आखिरकार अंग्रेजों को महायुद्ध में विजय हासिल करने के बावजूद भारत को आजाद करना पड़ा.

3. '1857 की क्रांति'

यह विद्रोह, प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है. 1857 की क्रांति की शुरूआत '10 मई 1857' को मेरठ मे हुई थी. स्वतंत्रता मंगल पांडे ने एक सिपाही विद्रोह के रूप में इस आंदोलन को मेरठ में शुरू किया गया था, जो नई एनफील्ड राइफल में लगने वाले कारतूस के कारण हुआ था. ये कारतूस गाय और सूअर की चर्बी से बने होते थे जिसे सैनिक को राइफल इस्तेमाल करने के लिए मुंह से हटाना होता था और ऐसा करने से सैनिकों ने मना कर दिया था. यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला. नाना साहिब, तातिया टोपे और रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि इस आंदोलन में शामिल हुए थे.

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4. आजाद हिन्द सरकार

इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार 'आज़ाद हिन्द सरकार' बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दी. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज को और शक्तिशाली बनाने पर ध्यान केंद्रित किया. पहले इस फौज में उन भारतीय सैनिकों को लिया गया था, जो जापान की ओर बंदी बना लिए गए थे. बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए.इसके साथ ही फ़ौज को आधुनिक युद्ध के लिए तैयार करने की दिशा में जन, धन और उपकरण जुटाए. आज़ाद हिंद की ऐतिहासिक उपलब्धि ही थी कि उसने जापान की मदद से अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भारत के पहले स्वाधीन भूभाग के रूप में हासिल कर लिया. इस विजय के साथ ही नेताजी ने राष्ट्रीय आज़ाद बैंक और स्वाधीन भारत के लिए अपनी मुद्रा के निर्माण के आदेश दिए. इंफाल और कोहिमा के मोर्चे पर कई बार भारतीय ब्रिटेश सेना को आज़ाद हिंद फ़ौज ने युद्ध में हराया.

5. 'असहयोग आंदोलन'

अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की थी. आंदोलन के दौरान स्टूडेंट्स ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया था. वकीलों ने अदालत में जाने से इनकार कर दिया था. कई कस्बों और शहरों में कामगार हड़ताल पर चले गए थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ.

शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा. सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई. फरवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान का उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर हमला कर उसमें आग लगा दिया. हिंसा की इस घटना के बाद गांधी जी ने इस आंदोलन को तत्काल वापस ले लिया था.