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पत्नी प्रॉपर्टी नहीं, साथ रहने के लिए पति नहीं कर सकता मजबूर- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा, 'आपको क्या लगता है? क्या पत्नी कोई वस्तु है, जो हम ऐसा आदेश दे सकते हैं? क्या बीवी कोई चल संपत्ति है, जिसे हम आदेश पारित करें.

Updated on: 03 Mar 2021, 08:24 AM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि पत्नी कोई ‘चल संपति ’ या एक ‘ वस्तु ’ नहीं है. पति की अगर अपनी पत्नी को साथ रखने की इच्छा भी है तो उसे साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश मंगलवार को एक याचिका की सुनवाई पर दिया जिसमें पति ने कोर्ट से मांग की थी कि पत्नी को दोबारा साथ रहने और फिर से एकसाथ जिंदगी बिताने का आदेश दिया जाए. याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने याचिकाकर्ता से पूछा कि 'आपको क्या लगता है? क्या पत्नी कोई वस्तु है, जो हम ऐसा आदेश दे सकते हैं? क्या बीवी कोई चल संपत्ति है, जिसे हम आपके साथ जाने का आदेश पारित करेंगे?'

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क्या है मामला
गोरखपुर के एक शख्स की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 9 के तहत पुरुष के पक्ष में संवैधानिक अधिकारों की बहाली पर 1 अप्रैल 2019 को आदेश दिया था. इस फैसले के बाद फैमिली कोर्ट में पत्नी ने कहा कि साल 2013 में शादी के बाद से ही पति ने दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया. इसके बाद वह अपने पति से अलग हो गई. पत्नी ने साल 2005 में गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट में अर्जी दी. कोर्ट ने पति को 20 हजार रुपये प्रति माह पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाने की मांग की लेकिन फैमिली कोर्ट ने दूसरी बार भी अपने आदेश को जारी रखा. इसके फैसले के खिलाफ पति इलाहाबाद हाईकोर्ट गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही बताया और केस को खारिज कर दिया. आखिर में पति ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दाखिल की. 

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सुप्रीम कोर्ट में क्या दी दलील
पति ने सुप्रीम कोर्ट से पत्नी को साथ रखने की गुहार लगाई. इस पर बचाव पक्ष की वकील अनुपम मिश्रा ने कहा कि गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए पति ये सब कर रहा है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत को महिला को उसके पति के पास वापस जाने के लिए राजी करना चाहिए. खासकर जब फैमिली कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया है. इस पर व्यक्ति की ओर से पेश वकील से बेंच ने कहा , ‘आप (व्यक्ति) इतना गैरजिम्मेदार कैसे हो सकते हैं ? वह महिला के साथ चल संपत्ति की तरह व्यवहार कर रहे हैं. वह एक वस्तु नहीं है.’ ऐसे में कोई याचिका पर कोई आदेश देने का सवाल ही नहीं उठता.