हिंदू किसी का विरोध नहीं करता लेकिन उसे एकजुट होने की जरूरत: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू किसी का विरोध नहीं करते और न ही वर्चस्व की इच्छा रखते हैं।
शिकागो:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू किसी का विरोध नहीं करते और न ही वर्चस्व की इच्छा रखते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि समुदाय को सदियों की पीड़ा को समाप्त करने के लिए संगठित होने की जरूरत है। यहां दूसरे विश्व हिंदू कांग्रेस में उन्होंने कहा कि विश्व को एकजुट करने की चाबी अहंकार को नियंत्रित करना और मतैक्य को स्वीकार करना है।
भागवत ने दुनिया भर से आए प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा, 'हमारे पास वर्चस्व का कोई पक्ष नहीं है। हिंदू किसी का विरोध करने के लिए नहीं जीते हैं। हम यहां तक कि कीटों को भी जीने की इजाजत देते हैं। कुछ लोग हैं जो हमारा विरोध कर सकते हैं। आपको बिना उन्हें नुकसान पहुंचाए उनका सामना करना है।'
उन्होंने कहा, 'हम क्यों 1000 वर्षो से पीड़ा सह रहे हैं? हमारे पास सबकुछ था, लेकिन हम अपने मूल्यों को भूल गए थे। हम साथ काम करना भी भूल गए थे। हिंदू समाज के पास कई क्षेत्रों में कई प्रतिभावान लोग हैं। लेकिन वे कभी साथ नहीं आते, साथ नहीं रहते।'
उन्होंने हिंदुओं से एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा, 'हिंदुओं का एकसाथ आना एक मुश्किल कार्य है। पहले जब हमारे स्वंयसेवक लोगों को संगठित करने की कोशिश करते थे, वे लोग कहा करते थे कि 'एक शेर कभी भी समूह में नहीं चलता' लेकिन शेर या रॉयल बंगाल टाइगर जोकि जंगल का राजा होता है, अगर वह अकेला है, तो आवारा कुत्ते एकसाथ मिलकर उसपर आक्रमण कर सकते हैं, उसे क्षति पहुंचा सकते हैं।'
दूसरा विश्व हिंदू कांग्रेस स्वामी विवेकानंद द्वारा 1893 में विश्व धर्म संसद में दिए ऐतिहासिक भाषण की 125वीं वर्षगांठ पर आयोजित किया जा रहा है।
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दुनिया को संगठित करने के बारे में उन्होंने भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर का उदाहरण दिया, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि दोनों ने कभी भी एक-दूसरे का विरोध नहीं किया।
उन्होंने कहा, 'पूरे विश्व को एकसाथ लाने की प्रमुख चाबी नियंत्रित अहंकार और मतैक्य को स्वीकार करना है।' भागवत ने कहा, 'यह समय है कि हिंदू समाज अपनी एकता को दुनिया को दिखाए और पुरानी बुद्धिमत्ता और मूल्यों की ओर लौटे।'
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उन्होंने कहा कि अहंकार के नकारात्मक प्रभाव से बचना चाहिए। भागवत ने कहा, 'कृष्ण ने कभी भी युधिष्ठिर से मतभेद नहीं किया और युधिष्ठिर ने भी कभी कृष्ण की अवहेलना नहीं की, क्योंकि अहंकार को परे रखकर एकसाथ काम करने की जरूरत थी।'
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