logo-image

ईदगाह मैदान में गणेश पूजा : क्या है झगड़े का कारण? जानें कोर्ट ने क्या कहा

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को देर रात सुनवाई में धारवाड़ नगर आयुक्त के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें हुबली ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी उत्सव आयोजित करने की अनुमति दी गई थी.

Updated on: 31 Aug 2022, 08:07 PM

बेंगलुरु:

बेंगलुरु (Bengaluru) के ईदगाह मैदान (Idgah Ground) और हुबली-धारवाड़ में गणेश चतुर्थी समारोह मंगलवार को दो अलग-अलग कोर्ट रूम लड़ाई का विषय था. जहां सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में उत्सव की अनुमति देने से इनकार कर दिया, वहीं कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka high court) ने हुबली-धारवाड़ के ईदगाह मैदान में समारोह की अनुमति देने वाले अधिकारियों के फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के ईदगाह मैदान पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया और संबंधित पक्षों से समाधान के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा. दूसरी ओर, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि हुबली ईदगाह मैदान धारवाड़ नगरपालिका का है और अंजुमन-ए-इस्लाम केवल एक पट्टा धारक है. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

भारत के मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित ने मंगलवार को कर्नाटक वक्फ बोर्ड और सेंट्रल मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ कर्नाटक की याचिका पर सुनवाई के लिए तीन-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने गणेश चतुर्थी समारोह के लिए बेंगलुरु में ईदगाह मैदान के उपयोग की अनुमति दी थी. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि यह एक स्वीकृत स्थिति है कि पिछले 200 वर्षों से ईदगाह मैदान में किसी अन्य समुदाय का कोई धार्मिक कार्य नहीं किया गया है. कपिल सिब्बल ने ईदगाह को वक्फ की संपत्ति बताया और मैदान का चरित्र बदलने की कोशिश की जा रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भी तर्क दिया कि मुसलमानों को अपनी वक्फ संपत्ति का प्रशासन करने का अधिकार है और राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.

इस बीच, राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पिछले 200 वर्षों से ईदगाह भूमि का उपयोग बच्चों के लिए खेल के मैदान के रूप में किया जाता था और सभी राजस्व प्रविष्टियां राज्य के नाम पर होती हैं. उन्होंने कहा कि ईदगाह की जमीन पर वक्फ बोर्ड का 'अनन्य कब्जा' नहीं है. संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी समारोह की अनुमति देने से इनकार कर दिया और दोनों पक्षों द्वारा भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. यह देखते हुए कि पिछले 200 वर्षों से ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी जैसा कोई समारोह आयोजित नहीं किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पक्षों से विवाद के समाधान के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा. 

ये भी पढ़ें : सड़कें, पुल और टावर: पैंगोंग झील के पार इंफ्रास्ट्रक्चर को ऐसे गति दे रहा चीन

कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या कहा?

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को देर रात सुनवाई में धारवाड़ नगर आयुक्त के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें हुबली ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी उत्सव आयोजित करने की अनुमति दी गई थी. न्यायमूर्ति अशोक एस. किनागी ने कहा कि संपत्ति धारवाड़ नगरपालिका की है और अंजुमन-ए-इस्लाम 999 साल की अवधि के लिए एक रुपये प्रति वर्ष के शुल्क पर केवल एक पट्टा धारक था. नगर आयुक्त के आदेश को अंजुमन-ए-इस्लाम द्वारा अदालत में चुनौती दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि संबंधित संपत्ति को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के तहत संरक्षित किया गया था, जो कहता है कि किसी भी धार्मिक पूजा स्थल को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है.

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि विचाराधीन संपत्ति धार्मिक पूजा स्थल नहीं थी और केवल बकरीद और रमजान के दौरान नमाज के लिए अनुमति दी गई थी. अन्य समय के दौरान इसका उपयोग बाज़ार और पार्किंग स्थल जैसे उद्देश्यों के लिए किया जाता था. उच्च न्यायालय ने कहा कि बेंगलुरु के चामराजपेट मैदान में यथास्थिति का उच्चतम न्यायालय का आदेश भी इस मामले पर लागू नहीं होता है.