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कारगिल संघर्ष के दौरान वाजपेयीजी ने कराया दिलीप साहब से फोन, जानें क्या कहा

इस घटना का जिक्र पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की आत्मकथा 'नीदर अ हॉक नॉर अ डव' में मिलता है.

Updated on: 07 Jul 2021, 11:11 AM

highlights

  • कारगिल संघर्ष के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कराई थी बात
  • भारत से फोन पर दिलीप साहब को सुन चौक गए थे नवाज शरीफ
  • दिलीप कुमार ने कहा था... मियां साहेब आपसे न थी ऐसी उम्मीद

नई दिल्ली:

अविभाजित भारत के पेशावर में जन्में यूसुफ खां की दिवानगी सिर्फ भारत में ही नहीं थी, बल्कि विभाजन के बाद पाकिस्तान में भी उनके कद्रदानों की फेहरिस्त काफी लंबी थी. संफवतः यही बात रही कि उन्हें पाकिस्तान सरकार के निशान-ए-इम्तियाज समेत गैर सरकारी संगठनों ने कई पुरस्कारों से भी नवाजा. यहां तक कि दिलीप साहब के पुश्तैनी घर को भी अब म्यूजियम में तब्दील करने का इरादा इमरान खान सरकार ने जाहिर किया है. दिलीप साहब की पाकिस्तान में मक़बूलियत का अंदाजा पूर्वप्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी था, जिन्होंने इसका फायदा कूटनीतिक स्तर पर उठाया था. इसका जिक्र पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की आत्मकथा 'नीदर अ हॉक नॉर अ डव' में मिलता है. 

1999 कारगिल संघर्ष का है किस्सा
कसूरी की आत्मकथा के मुताबिक बात 1999 की है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के एडीसी ने आकर उनसे कहा कि 'भारत के प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी का फ़ोन है. वह आपसे तुरंत बात करना चाहते हैं.' जब नवाज शरीफ़ फ़ोन पर आए तो वाजपेयी ने उनसे कहा, 'एक तरफ़ तो आप लाहौर में हमारा गर्मजोशी से स्वागत कर रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ़ आपकी फ़ौज कारगिल में हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रही थी.' नवाज़ शरीफ़ ने जवाब दिया, 'आप जो कह रहे हैं, उसका मुझे कोई इल्म नहीं है. मुझे आप थोड़ा वक़्त दीजिए. मैं अपने सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ से बातकर आपको तुरंत फ़ोन करता हूं.'

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दिलीप साहब ने नवाज शरीफ से कहा... मियां साहेब आपसे उम्मीद नहीं थी
ख़ुर्शीद महमूद कसूरी अपनी आत्मकथा 'नीदर अ हॉक नॉर अ डव' में लिखते हैं, 'टेलिफ़ोन पर बातचीत ख़त्म होने से पहले वाजपेयी ने नवाज़ शरीफ़ से कहा, मैं चाहता हूं कि आप उस शख़्स से बात करें जो मेरे बग़ल में बैठा है और मेरी और आपकी बातचीत सुन रहा है.' नवाज़ शरीफ़ ने फ़ोन पर जो आवाज़ सुनी उसे वह ही नहीं पूरा भारतीय उपमहाद्वीप पहचानता था. ये आवाज़ थी पीढ़ियों से भारतीय और पाकिस्तानी फ़िल्म प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले दिलीप कुमार की. दिलीप कुमार ने कहा, 'मियां साहेब हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी. आपको शायद पता नहीं कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव होता है, भारतीय मुसलमानों की स्थिति बहुत पेचीदा हो जाती है और उन्हें अपने घरों तक से बाहर निकलने में दिक्कत हो जाती है. हालत पर काबू करने के लिए कुछ करिए.'