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अपने ही जज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कलकत्ता हाईकोर्ट, जानें वजह

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने ही एक जज के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. प्रशासनिक विंग की ओर से दायर अर्जी में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य के उस आदेश को चुनौती दी है.

Updated on: 28 Jul 2021, 01:36 PM

नई दिल्ली :

कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने ही एक जज के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. प्रशासनिक विंग की ओर से दायर अर्जी में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमे उन्होनें अपने सामने लंबित एक केस को डिविजन बेंच को ट्रांसफर करने के लिए एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और कोर्ट प्रशासन की आलोचना की थी. जस्टिस सब्यसाची ने अपने आदेश में गहरा तंज कसते हुए कहा था कि 'धृष्टता' को शीर्ष संस्थानों में बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए.चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो रातोरात मामले को दूसरी बेंच को सौंप दे.

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ये है पूरा मामला
एक मामले की वर्चुअल सुनवाई के दौरान खराब कनेक्टिविटी होने पर सख्त टिप्पणियां करने वाले कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य ने अब उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस और कोर्ट प्रशासन के खिलाफ ही आदेश पारित कर दिया. दरअसल 16 जुलाई को जिस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस ने कनेक्टिविटी को लेकर टिप्पणी की थी, उसे चीफ जस्टिस ने डिविजन बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. इसे लेकर ही उन्होंने चीफ जस्टिस और कोर्ट प्रशासन के खिलाफ आदेश पारित किया है. भट्टाचार्य ने 10 पन्नों के अपने आदेश में एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और कोर्ट प्रशासन की आलोचना की है. जस्टिस भट्टाचार्य ने सोमवार को पारित आदेश में कहा कि कार्यवाहक चीफ जस्टिस या फिर चीफ जस्टिस रोस्टर बनाने के अधिकारी होते हैं और वह कोर्ट का प्रशासन तय करते हैं. लेकिन इस बात में संदेह है कि क्या वह अपनी प्रशासनिक क्षमता के तहत रातोंरात किसी मामले को दूसरी बेंच या जज को सौंप सकते हैं.

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जज ने कहा कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं, लेकिन इसका अर्थ मास्टर ऑफ ऑल नहीं हो सकता है. जज की ओर से दिया गए इस आदेश की कॉपी सोमवार रात को हाई कोर्ट की वेबसाइट पर भी अपलोड हुई है.  जज ने अपने आदेश में कहा कि मेरे आदेश पर असिस्टेंट कोर्ट ऑफिसर ने रजिस्ट्रार जनरल को बताया है कि उनके पास यह ताकत नहीं है कि वह यह तय कर सकें कि कौन सा केस किस बेंच को सौंपा जाएगा.