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मायावती के खिलाफ विधायक ने दिया बेहद आपत्तिजनक बयान, बीएसपी ने कहा, मानसिक संतुलन खो चुकी है बीजेपी

चंदौली से बीजेपी की विधायक साधना सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है.

Updated on: 19 Jan 2019, 11:04 PM

नई दिल्ली:

यूपी के चंदौली से बीजेपी की विधायक साधना सिंह ने एक कार्यक्रम के दौरान बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती को लेकर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है. लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी से उऩके गठबंधन को लेकर साधना सिंह ने ऐसा बयान दिया है जिसे हम आपको बता भी नहीं सकते हैं. अपने बयान में साधना सिंह ने मायावती के लिए कई अपमानजनक बातें की है. वहीं दूसरी तरफ साधना सिंह के आपत्तिजनक बयान पर बीएसपी ने भी पलटवार किया है. मायावती के बेहद करीबी नेता सतीश चंद्र मिश्रा ने साधना सिंह पलटवार करते हुए कहा, 'जिस शब्द का इस्तेमाल उन्होंने हमारे पार्टी प्रमुख के लिए किया है वो बीजेपी के स्तर को दिखाता है. उन्होंने कहा बीएसपी और एसपी के गठबंधन के ऐलान के बाद से ही बीजेपी नेता अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं. ऐसे नेताओं को निश्चित तौर पर आगरा या बरेली के पागलखाने में भर्ती कराना चाहिए.'

मायावती का राजनैतिक जीवन

साल 1984 तक मायावती ने बतौर शिक्षिका काम किया. वे कांशीराम के कार्य और साहस से काफी प्रभावित थी. 1984 में जब कांशीराम ने एक नए राजनैतिक दल ‘बहुजन समाज पार्टी’ का गठन किया तो मायावती शिक्षिका की नौकरी छोड़ कर पार्टी की पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गयीं. उसी साल उन्होंने मुज्ज़फरनगर जिले की कैराना लोक सभा सीट से अपना पहला चुनाव अभियान आरंभ किया. साल 1985 और 1987 में भी उन्होंने लोकसभा चुनाव में कड़ी मेहनत की. आख़िरकार साल 1989 में उनके दल ‘बहुजन समाज पार्टी’ ने 13 सीटों पर चुनाव जीता.

धीरे-धीरे पार्टी की पैठ दलितों और पिछड़े वर्ग में बढ़ती गयी और साल 1995 में वे उत्तर प्रदेश की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनायी गयीं. साल 2001 में पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने मायावती को दल के अध्यक्ष के रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. 2002-2003 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार में मायावती फिर से मुख्यमंत्री चुनी गई. इसके बाद बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया और मायावती सरकार गिर गयी. 

साल 2007 में फिर लौटीं मायावती

सन 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद मायावती फिर से सत्ता में लौट आई और भारत के सबसे बड़े राज्य की कमान संभाली. मायावती के शासनकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के बाहर बसपा का विस्तार नहीं हो पाया, क्योंकि उनके निरंकुश शासन के चलते ज्यादातर पिछड़े वर्ग के लोगों ने उनसे मुंह मोड़ लिया. मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान दलित और बौद्ध धर्म के सम्मान में कई स्मारक स्थापित किये.