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बाटला हाउस एनकाउंटर: आखिर आरिज को फांसी की सजा क्यों हुई, जानिए कोर्ट ने फैसले में क्या कहा

साकेत कोर्ट ने बटला हाउस एनकाउंटर में दोषी आरिज को फांसी की सजा मुकर्रर की है. एडिशनल सेशन जज संदीप यादव ने 22 पेज के फैसले में उन वजहों का उल्लेख किया है, जिस वजह से कोर्ट ने फांसी की सजा देना ही उचित समझा.

Updated on: 15 Mar 2021, 08:24 PM

highlights

  • दोषी आरिज ने अपने जघन्य अपराध से अपने जीने का अधिकार खो दिया है
  • वकील ने उसकी कम उम्र का हवाला देते हुए कोर्ट से उदारता दिखाने की पैरवी की थी
  • साल 2009 में भगोड़ा घोषित होने के बाद साल 2018 में जाकर गिरफ्तार हुआ

नई दिल्ली:

बाटला हाउस मुठभेड़ (Batla House Encounter)  के 13 साल बाद दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या और अन्य अपराधों के दोषी आरिज खान को मौत की सजा सुनाई. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने मौत की सजा सुनाते हुए इसे 'दुर्लभतम मामला' बताया. अभियोजन पक्ष ने मामले में आरिज खान के लिए मृत्युदंड की मांग की थी, जबकि उसके वकील ने उसकी कम उम्र का हवाला देते हुए कोर्ट से उदारता दिखाने की पैरवी की थी. कोर्ट ने यह देखते हुए कि उसने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट और इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या की थी, 8 मार्च को इस मामले में आरिज खान को दोषी ठहराया था. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने कहा था कि आरिज खान ने अपने साथियों के साथ मिलकर साजिशन इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की गोली मारकर हत्या की थी.

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एडीशनल सेशन जज संदीप यादव ने  फैसले में कहा  कि कोर्ट के सामने सजा तय वक्त करते वक्त बड़ा सवाल ये था कि क्या दोषी समाज के लिए खतरा है.
इस मामले में आरिज ने  जिस तरीके से  बिना किसी उकसावे के पुलिस पर फायरिंग करने के जघन्य और घिनौने कृत्य को अंजाम दिया, वो दर्शाता है कि वह न केवल 'स्टेट' का दुश्मन है, बल्कि  समाज के लिए भी खतरा है . यही नही, उसकी दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, यूपी के विभिन्न ब्लास्ट केस में मिलीभगत भी उसे समाज के के लिये खतरा साबित करती है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोषी आरिज ने अपने जघन्य अपराध से अपने जीने का अधिकार खो दिया है. अपराध के अंजाम देने के पीछे का माइंड सेट, इसकी जघन्यता उसे rarest of rare की श्रेणी में ला देती है,जहां पर कानून के मुताबिक अधिकतम सजा मुकर्रर हो सकती है. समाज की रक्षा और अपराध पर रोक कानून  का मुख्य मकसद है और ये तभी हो सकता है, जब दोषी को उचित सजा मुकर्रर हो. इस मामले में इंसाफ तभी होगा जब दोषी को फांसी की सजा मिले.

साकेत कोर्ट ने बटला हाउस एनकाउंटर में दोषी आरिज को फांसी की सजा मुकर्रर की है. एडिशनल सेशन जज संदीप यादव ने 22 पेज के फैसले में उन वजहों का उल्लेख किया है, जिस वजह से कोर्ट ने फांसी की सजा देना ही उचित समझा.

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कोर्ट ने लिखित  फैसले में कहा कि कोर्ट के सामने सजा तय वक्त करते वक्त बड़ा सवाल ये था कि क्या दोषी समाज के लिए खतरा है. इस मामले में आरिज ने  जिस तरीके से  बिना किसी उकसावे के पुलिस पर फायरिंग करने के जघन्य और घिनौने कृत्य को अंजाम दिया, वो दर्शाता है कि वह न केवल 'स्टेट' का दुश्मन है, बल्कि  समाज के लिए भी खतरा है . यही नही, उसकी दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, यूपी के विभिन्न ब्लास्ट केस में मिलीभगत भी उसे समाज के के लिये खतरा साबित करती है.

दोषी आरिज ने अपने जघन्य अपराध से अपने जीने का अधिकार खो दिया है. अपराध के अंजाम देने के पीछे का माइंड सेट, इसकी जघन्यता उसे rarest of rare की श्रेणी में ला देती है,जहांपर कानून के मुताबिक अधिकतम सजा मुकर्रर हो सकती है.

समाज की रक्षा और अपराध पर रोक कानून  का मुख्य मकसद है और ये तभी हो सकता है, जब दोषी को उचित सजा मुकर्रर हो. इस मामले में इंसाफ़ तभी होगा जब दोषी को फांसी की सजा मिले.

कोर्ट ने  फैसले में माना कि आरिज के सुधार की गुज़ाइश नहीं है.कहा- मौका ए वारदात से वो फरार हो गया.दस साल तक पुलिस को चकमा देता रहा. साल 2009 में भगोड़ा घोषित होने के बाद साल 2018 में जाकर गिरफ्तार हुआ. ट्रायल के दौरान भी नहीं लगा कि उसे अपने किए का कुछ पछतावा है.