अयोध्या विवाद: घंटी बजाकर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती, फरिश्ते नहीं आते
पीएन मिश्रा ने कहा, विवादित ज़मीन पर खुदाई दौरान किचन, बर्तन जैसे समान मिले, हदीस के मुताबिक ऐसी जगह मस्ज़िद तो नही हो सकती.
नई दिल्ली:
अयोध्या मामले की सुनवाई के 16वें दिन राजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने दलीलें रखीं. उन्होंने कहा, शरीयत के हिसाब से भी जबर्दस्ती कब्जाई गई ज़मीन पर मस्ज़िद नहीं बनाई जा सकती. जन्मस्थान पर मौजूद विवादित इमारत में घंटियां लगी हुई थीं. मस्ज़िदों में घंटियों की मनाही होती है. ऐसे में इस्लामिक क़ानून के लिहाज़ से भी ये इमारत मस्ज़िद नहीं है. पीएन मिश्रा ने यह भी कहा कि मुस्लिम भी बताते हैं कि बतौर मस्ज़िद इस इमारत का इस्तेमाल कभी लगातार नहीं रहा. पीएन मिश्रा ने इस्लामिक विद्वानों/क़ानून का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश की कि विवादित ज़मीन पर मौजूद इमारत मस्ज़िद नहीं कही जा सकती.
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उन्होंने कहा, विवादित ज़मीन पर खुदाई दौरान किचन, बर्तन जैसे समान मिले, हदीस के मुताबिक ऐसी जगह मस्ज़िद तो नही हो सकती. इमाम अबु हनीफा का कहना था कि अगर किसी जगह पर दिन में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ने के अज़ान नहीं होती तो वो जगह मस्ज़िद नहीं हो सकती. पीएन मिश्रा ने नरसिंह पुराण का हवाला देते हुए कहा, इसके मुताबिक भी घंटियां हिन्दू धर्म का अभिन्न हिस्सा रही हैं.
जस्टिस बोबडे ने पूछा- क्या वहां घंटियां मौजूद थीं. पीएन मिश्रा ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, जी बिल्कुल. बिना घण्टियों के स्वर के देवता की आराधना नहीं हो सकती. इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा- हमें ये पेश किए सबूतों में नज़र नहीं आया. जिस तरह की तस्वीरें, मूर्ति, डिजाइन वहां मिले, शरीयत के मुताबिक वो जगह मस्जिद नहीं कही जा सकती.
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जस्टिस भूषण ने कहा- वैसे बादशाहों के दरबार में भी घण्टियां होती थीं और घण्टी बजाकर फरियादी गुहार लगाते थे. पीएन मिश्रा ने जवाब देते हुए कहा, मैं धार्मिक स्थान की बात कर रहा हूं. बादशाह तो बादशाह हैं, कुछ भी कर सकते हैं.
जस्टिस भूषण ने कहा- कल आपकी दलील थी कि बादशाह भी शरीयत से परे जाकर कुछ न कर सके. इस पर पीएन मिश्रा ने कहा, 1949 में ज़मीन पर सरकारी कब्जे के बाद हासिल सबूतों में बड़ी घण्टी वहां से मिली. जस्टिस बोवड़े ने पूछा- घण्टियों का कॉन्सेप्ट तो ईसाई धर्म मे भी है. पीएन मिश्रा ने इस पर सहमति जताई.
पीएन मिश्रा ने कहा, ऐसा कहा जाता है कि जब इस पर चर्चा हुई कि नमाज पढ़ने के लिए अज़ान कैसे दी जाए, तब घंटों के जरिए आवाज़ देने पर चर्चा हुई थी, लेकिन पैगम्बर ने ऐसा करने की इजाज़त नहीं दी.
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पीएन मिश्रा की दलीलें खत्म होने के बाद हिंदू महासभा की ओर से हरिशंकर जैन ने अपनी दलीलें पेश करनी शुरू की. जैन ने कहा, 1885 से पहले वहां मस्जिद को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं थी. 1528 से लेकर 1855 तक वहां मस्जिद की मौजूदगी को लेकर कोई मौखिक/दस्तावेजी सबूत नहीं है. अंग्रेजों के आने के बाद हिंदुओं से पूजा का अधिकार छीन गया, मुसलमानों को विवादित ज़मीन पर शह मिली. यही से विवाद की शुरुआत हुई.
पीएन मिश्रा ने कहा कि विवादित स्थान पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ, पैर आदि धोने) की जगह मौजूद नहीं है. 1885 से पहले वहां नमाज़ पढ़े जाने के भी सबुत नही है. कहा- बाबर एक विदेशी हमलावर था. उसने देश पर हमला किया. क्या एक विदेशी आक्रमणकारी के हक को अब हम तरजीह देंगे. हम दासतां के उन काले दिनों को बहुत पीछे छोड़ आये है. आज हम एक सभ्य समाज में रह रहे हैं.
हरिशंकर जैन ने कहा, अगर हम आज ये साबित कर दें कि उस जगह पर कभी मंदिर था, तो क्या संविधान के लागू होने के बाद भी हिन्दुओं के अधिकार में कटौती होती रहेगी.
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