पुरानी सोच छोड़ जटिलता और चुनौतियों से हमें निपटना है: सेना प्रमुख

थल सेना प्रमुख ने कहा कि पिछले एक साल के दौरान उत्तरी सीमाओं पर हुए घटनाक्रम इस बात की कड़ी याद दिलाते हैं कि क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को आधुनिक युद्ध की अनिवार्यताओं के लिए निरंतर तैयारी और अनुकूलन करने की आवश्यकता है.

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Shailendra Kumar
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Army Chief General MM Naravane

पुरानी सोच छोड़ जटिलता और चुनौतियों से हमें निपटना है: सेना प्रमुख( Photo Credit : @ANI)

थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे (Army Chief MM Naravane) ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद पर भारत और चीन के बीच बातचीत से ‘विश्वास निर्माण’ में मदद मिली है. उन्होंने कहा कि फरवरी में पैंगोंग झील क्षेत्र से सैनिकों की वापसी होने के बाद से क्षेत्र की स्थिति सामान्य है. इसके साथ ही उन्होंने ‘शेष मुद्दों’ के हल होने को लेकर विश्वास जताया. सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने गुरुवार को कहा कि डिजिटल युग में ट्रांजिशन यानी पारगमन रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीडीपी) और रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) की मौजूदा अवधारणा के विपरीत है और भारत को पुरानी मानसिकता को छोड़ने और प्रक्रियाओं को लचीला और अनुकूल बनाने की जरूरत है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर एक थिंक-टैंक को संबोधित करते हुए जनरल नरवणे ने कहा, इन सभी के लिए सरलीकृत प्रक्रियाओं की आवश्यकता होगी, जो संक्रमण की सुविधा प्रदान करें. दुर्भाग्य से, यह हमारे लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक रहा है.

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'पुरानी मानसिकता को छोड़ने और प्रक्रियाओं को अधिक लचीला बनाने की आवश्यकता'
उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी विशिष्ट तकनीकों का उपयोग करने, आईटी में गहराई का दोहन करने और आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए, भारत को पुरानी मानसिकता को छोड़ने और प्रक्रियाओं को अधिक लचीला और अनुकूल बनाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, हमें नौकरशाही मामलों में एक क्रांति की सख्त जरूरत है. उन्होंने कहा कि इन उभरती हुई सैन्य प्रौद्योगिकियों ने नैतिक विचारों की एक श्रृंखला भी उठाई है, जो अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं यदि वे प्रत्याशित रूप से प्रदर्शन करने में विफल रहते हैं.

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'सिस्टम की विफलता से लेकर सशस्त्र संघर्ष के कानून के उल्लंघन तक हो सकते हैं'
नरवणे ने कहा, ये परिणाम सिस्टम की विफलता से लेकर सशस्त्र संघर्ष के कानून के उल्लंघन तक हो सकते हैं. मानवाधिकार समूह अंतरराष्ट्रीय कानून की परवाह किए बिना रोबोट हथियारों की दौड़ की चेतावनी देते हैं. थल सेना प्रमुख ने कहा कि पिछले एक साल के दौरान उत्तरी सीमाओं पर हुए घटनाक्रम इस बात की कड़ी याद दिलाते हैं कि क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को आधुनिक युद्ध की अनिवार्यताओं के लिए निरंतर तैयारी और अनुकूलन करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हैं जब नई प्रौद्योगिकियों द्वारा संचालित आविष्कारों ने न केवल गेम के नियमों को बदल दिया है, बल्कि पूरे तरह से खेल को भी बदल दिया है. उन्होंने कहा, चाहे वह 9वीं शताब्दी में गन पाउडर का आविष्कार हो या 19वीं शताब्दी में मशीन गन की उपस्थिति, युद्ध की लड़ाई में आमूल-चूल परिवर्तन हुए. फिर निश्चित रूप से ऐसी प्रौद्योगिकियां रही हैं, जिन्होंने उन्हें रखने वालों को निर्णायक बढ़त प्रदान की है.

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'आगे की चुनौतियों पर सावधानी बरतने की जरूरत'
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, उत्तरी अटलांटिक में पनडुब्बी रोधी युद्ध के संचालन में ब्रिटेन और सोनार की लड़ाई के दौरान रडार के उद्भव का ब्रिटेन की रक्षा पर एक नाटकीय प्रभाव पड़ा. उन्होंने कहा कि इसके अलावा शीत युद्ध के दौरान, उभरती हुई कंप्यूटर प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक घटक प्रौद्योगिकी और प्रणोदन प्रौद्योगिकी, प्रत्येक का शीत युद्ध की सैन्य क्षमताओं के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा. हाल के दिनों में सामरिक-सैन्य मामलों पर प्रौद्योगिकियों का प्रभाव गहरा विघटनकारी रहा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा एनालिटिक्स के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने आगे की चुनौतियों पर सावधानी बरतने की बात कही. उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से, हाई-टेक सेनाओं को कम तकनीक वाले विरोधियों द्वारा लगातार विफल किया गया है. इस प्रकार, हमारी सूची और सिद्धांतों में टेक्नोलॉजी को शामिल करते हुए संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है.

HIGHLIGHTS

  • सीजफायर समझौते के बाद नहीं हुई घुसपैठ
  • ड्रोन से निपटने को विकसित हो रही क्षमताएं
  • शीत युद्ध की सैन्य क्षमताओं के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा

 

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