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नेपाल में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव के बीच चीन हुआ सक्रिय, वामपन्थी दलों को मिलाने की कवायद तेज

बृहस्पतिवार को चीनी प्रतिनिधि मंडल की माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड से, शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से और शनिवार को जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव के साथ लम्बी बैठक की.

Updated on: 25 Jun 2022, 02:02 PM

नई दिल्ली:

नेपाल की वर्तमान सरकार के द्वारा चीन को एक के बाद एक झटका दिए जाने से बौखलाए चीन एक बार फिर नेपाल के कम्यूनिष्ट पार्टियों के बीच एकता कराने की कवायद तेज कर दी है. नेपाल में अपनी पकड कमजोर होता देख चीन ने नेपाल में आम चुनाव से ठीक पहले सभी बडे वामपंथी शक्तियों को पार्टी एकता करते हुए चुनाव में जाने का निर्देशात्मक सुझाव दिया है. पिछले 24 घंटे में कम्यूनिष्ट पार्टी ऑफ चाईना के इंटरनेशनल डिपार्टमेंट के प्रमुख लियु जिआनचाओ ने नेपाली कम्यूनिष्ट के बडे नेताओं से विडिओ कान्फ्रेंस के जरिए बैठक कर समान विचारधारा वाले दल के फिर से एक साथ आने और साथ में चुनाव में जाने के लिए दबाब डाला है. बृहस्पतिवार को चीनी प्रतिनिधि मंडल की माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड से, शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से और शनिवार को जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव के साथ लम्बी बैठक की.

नेपाली नेता इन मुलाकातों को छुपाते रहे लेकिन चीन के तरफ से इन बैठकों का खुलासा कर दिया गया है. अपने आधिकारिक बयान में सीपीसी इंटरनेशनल डिपार्टमेंट ने कहा है कि कम्यूनिष्ट पार्टी ऑफ चाइना और नेपाल के वामपंथी दलों के बीच समान विचारधारा होने के कारण एक अलग प्रकार का ही संबंध है. चीनी कम्यूनिष्ट पार्टी नेपाल के कम्यूनिष्ट दलों के साथ हमेशा ही अच्छे और सुदृढ संबंध स्थापित करने के लिए तैयार है.

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चीन ने अमेरिका के स्टेट पार्टनरसीप प्रोग्राम को रद्द किए जाने के लिए कम्यूनिष्ट दलों की भूमिका की प्रशंसा करते हुए विदेश विभाग प्रमुख ने चीन के खिलाफ नेपाल की भूमि प्रयोग नहीं होने देने के प्रतिबद्धता की प्रशंसा की है. दो दिन पहले ही चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बीजिंग में नियमित पत्रकार सम्मेलन में इस बात की प्रशंसा की थी कि नेपाल ने अमेरिकी परियोजना को ठुकरा कर एक स्वतंत्र, सार्वभौम और अच्छे पडोसी देश होने का परिचय दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने जिस तरह से दबाब बनाकर नेपाल को चीन के खिलाफ बने इंडो पैसेफिक स्ट्रेटिजी के तहत लाने का प्रयास किया था और जबरन एमसीसी पास करवाया था वह वाकई में एक गलत निर्णय था.

नेपाल के कम्यूनिष्ट पार्टियों के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत में सीपीसी विदेश विभाग प्रमुख ने कहा कि नेपाल में कम्यूनिष्ट दलों की एकता और कम्यूनिष्ट दलों की सरकार ही चीन के हित की बात करती है और चीन के संवेदनशील और सुरक्षा मसलों को गम्भीरतापूर्वक देखती है.

नेपाल के तरफ से अब तक बेल्ट एंड रोड परियोजना में कोई भी काम आगे नहीं बढ पाने के कारण नेपाल में अनुकूल सरकार का नहीं होना है. विदेश विभाग प्रमुख ने बताया कि चीन बीआरआई के तहत विकास परियोजनाओं को आगे बढाना चाहता है. और इसके लिए नेपाल में समान विचारधारा और अनुकूल सरकार होना बहुत जरूरी है.

चीनी कम्यूनिष्ट पार्टी विदेश विभाग के प्रतिनिधियों ने नेपाली कम्यूनिष्ट नेताओं से कहा कि बीजिंग की इच्छा है कि नेपाल के सभी वामपंथी दल एकजुट होकर चुनाव लडे. इसके लिए चीन हरसंभव मदत करने के लिए तैयार है.

पांच साल पहले नेपाल में हुए आम चुनाव से ठीक पहले चीन के ही पहल पर दो बडी कम्यूनिष्ट पार्टियां नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (एमाले) और माओवादी के बीच एकता की घोषणा हुई थी. दोनों दलों ने मिलकर पिछले चुनाव में दो तिहाई के करीब बहुमत प्राप्त किया था. इतना ही नहीं नेपाल के सात में से 6 प्रदेशों में कम्यूनिष्ट दलों की प्रचण्ड बहुमत की सरकार बनी थी. 

एक बार फिर आम चुनाव से पहले चीन नेपाल के कम्यूनिष्ट पार्टियों को एक करने में जुट गए हैं. नेपाल की कम्यूनिष्ट पार्टी के विभाजन के बाद ना सिर्फ ओली की सरकार गिर गई बल्कि 6 में से 5 राज्यों की सरकारें भी गिर गई थी. अमेरिका का दबदबा बढ गया था और नेपाल चीन को एक के बाद एक झटके देते जा रहा था.

नेपाल ने चीन की बीआरआई से अपने को अलग कर लिया. चीन के साथ सीमा विवाद सामने आ गया. चीन के पास रहे नेपाल के दो बडे हाईड्रोपावर पावर प्रोजेक्ट्स छीन लिए गए और नेपाल का एक मात्र एक्सप्रेस वे के निर्माण से भी चीनी कंपनी को बाहर कर दिया गया था.

इस समय नेपाल पूरी तरह से अमेरिकी प्रभाव में आ गया है और अमेरिका नेपाल को इंडो पैसेफिक मे ही नहीं बल्कि अमेरिकी सेना के साथ स्टेट पार्टनरसीप प्रोग्राम में भी जोड दिया है जिसके कारण चीन नेपाल की वर्तमान सरकार से काफी नाराज है. अमेरिका की यह रणनीति चीन को घेरने के लिए ही है.