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प्रतिकूल परिस्थिति ने टिकैत बंधुओं के बीच मिटाई दूरी, रंग लाए राकेश के आंसू

प्रतिकूलता अक्सर दूरी मिटाने का काम करती है, जैसा कि टिकैत बंधुओं के बीच हुआ है.

प्रतिकूलता अक्सर दूरी मिटाने का काम करती है, जैसा कि टिकैत बंधुओं के बीच हुआ है.

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Nihar Saxena
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Tikait Brothers

नरेश टिकैत से मतभेद दूर करने वाले रहे राकेश टिकैत के आंसू.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

प्रतिकूलता अक्सर दूरी मिटाने का काम करती है, जैसा कि टिकैत बंधुओं के बीच हुआ है. महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे नरेश टिकैत शक्तिशाली बलियान खाप के प्रमुख हैं और छोटे बेटे, राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रवक्ता हैं, जो किसानों के प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं. नरेश टिकैत को अपने पिता की विरासत स्वभाविक रूप से मिली है, लेकिन राकेश टिकैत हालिया किसान आंदोलन की वजह से लोकप्रिय किसान नेता के रूप में उभरे हैं. भले ही दोनों एक ही संगठन से हों, दोनों के बीच मतभेद सार्वजनिक है.

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मतभेदों को दूर कर दोनों भाई हुए एक
हालांकि गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद चल रहे किसान आंदोलन में जो घटनाक्रम हुए हैं, वे जाहिर तौर पर दोनों भाइयों को करीब ले आए हैं. राकेश टिकैत ने गुरुवार की रात को भावनात्मक अपील की थी, जिससे उनके समर्थक मजबूती से उनके साथ जुड़ गए और उन्होंने अपने भाई के साथ एक अनकही दूरी भी पाट दी. नरेश टिकैत ने शुक्रवार को घोषणा की कि मेरे भाई के आंसू व्यर्थ नहीं जाएंगे.

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गाजीपुर बॉर्डर का भी बदला माहौल
गौरतलब है कि गुरुवार को पुलिस और प्रशासन की चहलकदमी के बाद से आशंकित किसान अपना सामान समेटने लगे थे, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों के साथ वार्ता विफल होने के बाद राकेश टिकैत के आंसुओं ने माहौल बदल दिया. हालात ऐसे बन गए कि आधी रात से ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम हिस्सों से किसानों के समूह गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ने लगे. जहां धरना खत्म होने की अटकलें लग रही थीं वहां रात में ही भीड़ जुटने लगी. शुक्रवार की सुबह तो हरियाणा के फरीदाबाद, पलवल, करनाल, सोनीपत, पानीपत से भी बड़ी संख्या में किसान धरना स्थल पहुंचे.

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महापंचायत बिना नतीजा खत्म
एक स्थानीय किसान हर गोविंद त्यागी ने कहा, 'हमारे नेता हमसे जो भी कहेंगे, हम करेंगे. अगर हमसे कहा जाता है तो हम दिल्ली में मार्च करने के लिए तैयार हैं. यह आंदोलन खत्म नहीं होगा, जैसा की कुछ लोग सोचते हैं.' यह अलग बात है कि महापंचायत बगैर किसी नतीजे पर पहुंचे ही खत्म हो गई. दूसरी बात यह भी सामने आई है कि महापचंयात वास्तव में मोदी विरोधी विपक्षी दलों का मंच ज्यादा नजर आ रही थी. अब यह तो समय ही बताएगा कि नाटकीय घटनाक्रम वाले किसान आंदोलन का भविष्य क्या है.

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