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महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक मानिकराव कोकाटे को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. धोखाधड़ी के केस में निचली अदालत की ओर से सुनाई दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए शीर्ष अदालत ने साफ किया कि इस फैसले के चलते कोकाटे की विधानसभा सदस्यता खत्म नहीं होगी. वे विधायक बने रहेंगे और उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस राहत का यह अर्थ नहीं है कि कोकाटे किसी भी 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' यानी लाभ के पद पर रहेंगे. इसका सीधा मतलब है कि वे फिलहाल मंत्री पद या किसी अन्य सरकारी लाभ के पद पर नहीं रह पाएंगे.
रोहतगी ने कोर्ट में सवाल खड़ा किया
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रथम दृष्टया दोषसिद्धि में "मौलिक त्रुटि" के सबूत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि "आय की घोषणा न करना अपने आप में किसी दस्तावेज को जाली (फर्जी) नहीं बनता है. मानिकराव कोकाटे की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी. उन्होंने कहा, जिस कथित अपराध का आरोप है, वह 1989 का बताया गया है. उस वक्त कोकाटे न तो विधायक थे और न ही किसी संवैधानिक पद पर आसीन थे. वे एक वकील के तौर पर काम कर रहे थे. रोहतगी ने कोर्ट में सवाल खड़ा किया कि क्या 1989 में एक वकील 30 हजार रुपये नहीं काम सकता?
विधानसभा की सदस्यता खत्म न हो
इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने नोटिस जारी किया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की दोषसिद्धि पर फिलहाल इस हद तक रोक जारी रहेगी कि विधानसभा की सदस्यता खत्म न हो. हालांकि, अदालत ने टिप्पणी की कि यह आदेश उन्हें किसी तरह के लाभ के पद पर बने रहने का अधिकार नहीं देता है. इस मामले में शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि उन्हीं की शिकायत पर यह कार्रवाई हुई. इस पर रोहतगी ने पलटवार किया. उन्होंने कहा कि शिकायतकर्ता एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं. उन्हें आपत्ति उठाने का अधिकार नहीं है.
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