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जेएनयू इलेक्शन न्यूज Photograph: (ANI)
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) देश की राजधानी दिल्ली में स्थित वह शिक्षण संस्थान, जो सिर्फ पढ़ाई ही नहीं बल्कि अपनी सियासी सरगर्मियों के लिए भी जाना जाता है. इन दिनों चुनावी माहौल में डूबी हुई है. आजकल सर्द हवाओं के बीच कैंपस का तापमान राजनीति ने बढ़ा दिया है.
कैंपस में जारी है चुनावी गर्मी
रात ढलते ही ओपन थिएटर में नारेबाजी की आवाजें गूंजने लगती हैं. कोई ग्रुप “वंदे मातरम” के नारे लगा रहा है, तो कहीं “जय भीम” और “इंकलाब ज़िंदाबाद” के स्वर हवा में तैरते हैं. छात्र अपने-अपने संगठनों के झंडे थामे उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार में जुटे हैं. यूनिवर्सिटी के भीतर प्रेसिडेंशियल डिबेट्स भी पूरे जोश के साथ हो रही हैं, जहां उम्मीदवार अपनी विचारधाराएं और कैंपस के लिए योजनाएं रख रहे हैं.
इस बार JNU छात्रसंघ चुनाव में कुल सात उम्मीदवार मैदान में हैं, जो यूनिवर्सिटी के शीर्ष पद यानी प्रेसिडेंट की कुर्सी के लिए मुकाबला कर रहे हैं. मतदान 4 नवंबर को होगा, जबकि 6 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे. ठीक मतदान से पहले पूरा कैंपस राजनीतिक बहसों, पोस्टरों, और स्लोगनों से सजा हुआ दिख रहा है.
क्या है JNU का इतिहास?
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की स्थापना 1969 में हुई थी. इसका नाम भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया. यह यूनिवर्सिटी अपने उच्चस्तरीय शोध, सामाजिक विज्ञान, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन, और बहस की खुली संस्कृति के लिए मशहूर है. यहां विचारों की विविधता और राजनीतिक विमर्श हमेशा से JNU की पहचान रहे हैं.
राजनीति के केंद्र में रहता है JNU
बीते वर्षों में, JNU कई बार राष्ट्रीय बहसों का केंद्र बना चाहे वह छात्र राजनीति हो या वैचारिक टकराव. यही वजह है कि यहां का हर चुनाव सिर्फ छात्र राजनीति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि देश के बड़े राजनीतिक रुझानों की झलक भी दिखाता है.
इस बार भी छात्र संगठनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है. हर ग्रुप अपनी विचारधारा के मुताबिक कैंपस की नीतियों और छात्र हितों को मुद्दा बना रहा है. कौन बनेगा JNU का अगला प्रेसिडेंट, इसका फैसला तो 6 नवंबर को होगा, लेकिन फिलहाल कैंपस में लोकतंत्र का यह पर्व अपने चरम पर है.
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