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सांकेतिक तस्वीर Photograph: (social)
ISRO: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 22 अगस्त 2025 को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के पहले मॉडल का अनावरण किया. यह दो दिवसीय समारोह नई दिल्ली के भारत मंडपम में शुरू हुआ, जहां लोगों ने करीब 3.8 मीटर चौड़े और 8 मीटर लंबे इस मॉडल को देखा.
भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2028 तक BAS-01 नामक पहला मॉड्यूल अंतरिक्ष में भेजा जाए और 2035 तक पूरा अंतरिक्ष स्टेशन तैयार हो जाए. इसके पूरा होने पर भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल होगा, जिनके पास अपना अंतरिक्ष स्टेशन है. वर्तमान में केवल अमेरिका, रूस, यूरोप, जापान और कनाडा द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और चीन का तियांगोंग ही सक्रिय हैं.
Celebrate National Space Day 2025 with us!
— ISRO (@isro) August 22, 2025
🗓 Aug 23, 2025
⏰ 10:00 IST
YouTube Livestreaming Link: https://t.co/RJhXb4Jll5#NSPD2025#NationalSpaceDay 🌌
क्या है BAS-01 मॉड्यूल
पहला मॉड्यूल BAS-01 भारत के अंतरिक्ष सपनों का आधार होगा. इसका वजन 10 टन होगा और इसे पृथ्वी से करीब 450 किलोमीटर ऊपर लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित किया जाएगा. इसमें पर्यावरण नियंत्रण और जीवन रक्षा प्रणाली (ECLSS), अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एयरलॉक और स्पेस सूट, सुरक्षा के लिए रेडिएशन व माइक्रो मेटियोरॉइड शील्डिंग, खिड़कियों से अवलोकन की सुविधा और अत्याधुनिक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम होंगे.
BAS के उद्देश्य
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि विज्ञान का बड़ा केंद्र होगा. इसमें माइक्रोग्रैविटी रिसर्च, जीवन विज्ञान और चिकित्सा संबंधी अध्ययन, अंतरग्रहीय मिशनों की तैयारी, अंतरिक्ष पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने जैसे प्रयोग होंगे. इसरो का मानना है कि यह स्टेशन नई पीढ़ी को विज्ञान व अंतरिक्ष अनुसंधान की ओर आकर्षित करेगा.
भारत की अंतरिक्ष योजनाएं
BAS के साथ ही भारत कई और मिशनों पर काम कर रहा है. 2026 तक गगनयान मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्री भेजने की तैयारी है. 2028 तक चंद्रयान-4 चंद्रमा से नमूने लेकर आएगा, वहीं शुक्रयान मिशन 2025-26 में शुक्र ग्रह का अध्ययन करेगा. BAS के जरिए भारत अंतरिक्ष पर्यटन के बाजार में भी कदम रखेगा, जिसका अनुमानित मूल्य 2030 तक 13 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है.
चुनौतियां और अवसर
इस परियोजना की लागत लगभग 20,000 करोड़ रुपये आंकी जा रही है. तकनीकी जटिलता, अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन और अंतरिक्ष कचरे की समस्या बड़ी चुनौती होंगी. लेकिन अवसर भी उतने ही बड़े हैं. यह मिशन भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में अग्रणी बनाएगा और घरेलू कंपनियों को भी इसमें भागीदारी का मौका मिलेगा.