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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में हाल के दिनों में हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं. वहां बिजली की बढ़ती कीमतों, खाद्य संकट और सरकारी विशेषाधिकारों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. इन प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों और नागरिकों के बीच झड़पें हुईं, जिसमें कम से कम 10 लोगों की मौत और दर्जनों घायल हो गए. स्थिति को काबू करने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र में इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं बंद कर दीं और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिए.
अवामी एक्शन कमेटी की अगुवाई में प्रदर्शन
जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेएएसी), जिसमें नागरिक समाज और व्यापारी संगठन शामिल हैं, ने सरकारी मंत्रियों और अधिकारियों को दिए गए विशेषाधिकार खत्म करने और शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 विधानसभा सीटों को हटाने की मांग उठाई. इसी दौरान हिंसा भड़की और सुरक्षाबलों की गोलीबारी में कई लोगों की जान चली गई. प्रदर्शनकारियों ने मृतकों के जनाजे की नमाज अदा कर विरोध को और तेज कर दिया.
भारत ने जताई कड़ी नाराजगी
भारत सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा निर्दोष नागरिकों पर की गई बर्बर कार्रवाई उसके दमनकारी रवैये और पीओके से संसाधनों की लूट का नतीजा है. उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान को इन भयावह मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. साथ ही उन्होंने दोहराया कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख हमेशा भारत का अभिन्न हिस्सा रहे हैं और रहेंगे.
पाकिस्तान सरकार की कोशिशें
हिंसा बढ़ने के बाद पाकिस्तान की संघीय सरकार ने विशेष वार्ताकारों को मुजफ्फराबाद भेजा और जेएएसी के प्रतिनिधियों से बातचीत की. हालांकि इससे पहले हुए वार्ता के दौर नाकाम रहे थे, जिसके बाद हालात बिगड़े. शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया है और कई इलाकों में कर्फ्यू जैसी स्थिति है.
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने भी सुरक्षाबलों द्वारा बल प्रयोग और नागरिकों की मौत की निंदा की है. आयोग का कहना है कि जब तक क्षेत्र के लोगों को उनके बुनियादी राजनीतिक अधिकार नहीं दिए जाते, तब तक वार्ता का कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सकता.
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