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ramdev Photograph: (social media)
सुप्रीम कोर्ट से पतंजलि को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने आईएमए यानी भारतीय चिकित्सा संघ की याचिका को खारिज कर दिया है. आईएमए (IMA) ने अपनी याचिका में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के प्रचार-प्रसार को लेकर टीवी, अखबार, सोशल मीडिया में देने वाले विज्ञापनों को भ्रामक की श्रेणी में रखा था. आईएमए की मांग थी कि ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो. आईएमए की दलील थी कि ऐसा करके आधुनिक चिकित्सा पद्धती का दुष्प्रचार हो रहा है. पूरा विवाद एक नियम को लेकर था. इसे सरकार ने खत्म कर दिया था.
इस नियम के कारण था विवाद
दरअसल, पिछले साल यानी 2024 में 1 जुलाई को केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के नियम 170 को खत्म कर दिया था. इस नियम के तहत कंपनियों को आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के विज्ञापन से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी. इस नियम को इसलिए रखा गया ताकि पुरानी चिकित्सा पद्धति का हवाला देकर किसी तरह के झूठे या फिर बड़े दावों को हवा न मिले. इस पर सरकार ने जैसे ही 170 वाले नियम को खत्म किया, सरकार से अनुमति लेने वाली जरूरत अब खत्म हो गई है. आयुष मंत्रालय ने इस नियम को खत्म किया था. सुप्रीम कोर्ट चाहकर भी ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी.
अदालत ने इस निर्णय पर क्या कहा
अदालत ने कहा नियम हटने के बाद पहले तो बीते साल अगस्त में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सरकार के फैसले पर अस्थाई रोक लगाई थी. इसके बाद जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने साफ किया कि जो नियम सरकार पहले खत्म कर चुकी है, उसको आधार बनाकर याचिका कैसे सुनी जा सकती है. इस तरह अदालत ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस विश्वनाथन की पीठ ने केस को अब यहां से बंद करने का निर्देश दिया. अदालत का साफ कहना था कि केंद्र ने जिस प्रावधान को हटाया है, उसे बहाल करने का अधिकार उसके पास नहीं है.
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