टाटा समूह के स्वामित्व वाली विमान सेवा कंपनियों एयर इंडिया और विस्तारा के विलय का विरोध करने वाली एयर इंडिया के एक पूर्व पायलट की याचिका को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा रिकॉर्ड पर कोई ऐसा सबूत नहीं रखा गया है जो गुटबंदी या बोली में धांधली के किसी भी मामले की ओर इशारा करता हो।
प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 19(1)(ए) के तहत दायर याचिका में 2022 में टाटा समूह द्वारा अधिग्रहण के बाद एयर इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
इससे पहले, सीसीआई ने 9 सितंबर 2023 को अपने आदेश के माध्यम से टाटा-एसआईए एयरलाइंस लिमिटेड (विस्तारा) के एयर इंडिया में विलय को मंजूरी दे दी थी, जो शामिल पक्षों की स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं के अधीन था।
याचिकाकर्ता दीपक कुमार ने विलय के कारण उनके करियर और सेवा रिकॉर्ड पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का दावा किया और एयर इंडिया द्वारा उनके सेवा रिकॉर्ड को दुर्भावनापूर्ण रूप से नष्ट करने का आरोप लगाया।
उन्होंने एयरलाइन पर अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया।
हालांकि, सीसीआई ने इस बात पर जोर दिया कि यह विवाद प्रतिस्पर्धा संबंधी चिंता की बजाय याचिकाकर्ता की सेवा से संबंधित एक परस्पर मामला प्रतीत होता है।
आयोग को गुटबंदी या बोली में धांधली का कोई सबूत नहीं मिला, जिसके कारण याचिका खारिज कर दी गई।
सीसीआई ने अपने आदेश में कहा, वर्तमान मामले में ओपी (एयर इंडिया) के खिलाफ अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनाया जा सकता है।
मामला अब अधिनियम की धारा 26(2) के प्रावधानों के अनुसार बंद कर दिया गया है।
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Source : IANS