पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक है चीन, अरुणाचल प्रदेश में कर रहा है ये प्लान

चीन ने एक बार फिर अपनी पुरानी चाल दोहराई है और वह भी ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. चीन 14 मई को अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों के नाम बदला.

चीन ने एक बार फिर अपनी पुरानी चाल दोहराई है और वह भी ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. चीन 14 मई को अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों के नाम बदला.

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Ravi Prashant
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इंडिया चीन रिलेशन Photograph: (X)

चीन ने एक बार फिर अपनी पुरानी चाल को दोहराते हुए अरुणाचल प्रदेश के 30 स्थानों के “नए नाम” घोषित किए हैं. यह कदम 14 मई 2025 को उठाया गया, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया है. भारत का स्पष्ट कहना है कि “नाम बदलने से न इतिहास बदलता है, न ज़मीन.” यह पहली बार नहीं है जब चीन इस तरह का दावा कर रहा है. इससे पहले भी वह कई बार अरुणाचल प्रदेश के स्थानों को चीनी नाम देने की कोशिश कर चुका है. भारत हमेशा इसे “कल्पनाओं का पुलिंदा” करार देता रहा है.

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चीन की यह कवायद कब शुरू हुई?

इस तरह की कवायद की शुरुआत 14 अप्रैल 2017 को हुई थी, जब चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने 6 स्थानों के “आधिकारिक” चीनी नाम जारी किए थे. इन स्थानों में तवांग, क्रा दादी, वेस्ट सियांग, सियांग, अंजॉ और सुबनसिरी जिले शामिल थे. इसके बाद दिसंबर 2021 में दूसरी लिस्ट में 15 नाम, और अप्रैल 2023 में तीसरी लिस्ट में 11 नाम शामिल किए गए थे.

अब 2025 में जारी हुए 30 नए नाम

चीन ने इस बार जिन 30 स्थानों के नाम बदले हैं, वे भी अरुणाचल प्रदेश के अलग-अलग जिलों में स्थित हैं. हालांकि भारत सरकार ने इन नामों को “बेतुका” बताते हुए स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया है.

आखिर चीन ऐसा क्यों कर रहा है?

चीन अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपना बताता है और इसे “झांगनान” यानी “दक्षिण तिब्बत” कहता है. चीन का उद्देश्य इन नामों को बदलकर इस क्षेत्र पर अपने “ऐतिहासिक दावे” को मजबूत करना है.

चीन 1914 के शिमला समझौते को मान्यता नहीं देता, जिसके तहत ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच मैकमोहन रेखा को सीमा माना गया था. चीन का कहना है कि तिब्बत उस समय स्वतंत्र नहीं था, इसलिए यह समझौता वैध नहीं है. चीन का दावा है कि तवांग और ल्हासा के बीच ऐतिहासिक धार्मिक संबंध रहे हैं, जिनका हवाला देकर वह तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता है.

चीन को इससे क्या फायदा?

यह चीन की राजनयिक दबाव बनाने की रणनीति है. जब भी कोई बड़ा भारतीय नेता अरुणाचल प्रदेश का दौरा करता है, चीन विरोध जताता है. 2017 में दलाई लामा की यात्रा के बाद पहली बार नामों की लिस्ट आई. 2021 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के दौरे के बाद चीन ने दूसरी सूची जारी की.

क्या यह रणनीति सिर्फ भारत के लिए है?

नहीं. चीन ने दक्षिण चीन सागर में भी ऐसे ही दावे किए हैं. वहाँ भी वह द्वीपों को चीनी नाम देकर उनका दावा करता है. यह उसकी आक्रामक विदेश नीति का हिस्सा है.भारत ने एक बार फिर दोहराया है कि अरुणाचल प्रदेश पर चीन का कोई भी दावा न वैध है, न स्वीकार्य. भारत की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है, अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा.

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