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बिहार इलेक्शन Photograph: (ANI)
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार ऐसी तस्वीर सामने रखी है जिसने सिर्फ राज्य ही नहीं, पूरे देश की राजनीति को हिला दिया है. कई एग्ज़िट पोल जहां कड़ा मुकाबला दिखा रहे थे, वहीं वास्तविक परिणामों में एनडीए ने आराम से बहुमत पार करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली. यह जनादेश आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय राजनीति खासकर 2029 लोकसभा चुनाव को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा.
‘मोदी फैक्टर’ किया काम?
इस जीत में सबसे बड़ा बदलाव बीजेपी के उभार का रहा. पहली बार पार्टी बिहार की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है. लंबे समय से जदयू को वरिष्ठ सहयोगी मानने वाली बीजेपी अब इस भूमिका में स्वयं खड़ी हो गई है. यह उछाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्र की योजनाओं और बूथ स्तर पर मजबूत पकड़ का नतीजा रहा. ‘मोदी फैक्टर’ ने इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई और बीजेपी को ऐसा जनादेश दिलाया जिसने बिहार की सत्ता समीकरण को पूरी तरह बदल दिया.
सुशासन सरकार पर महिलाओं ने किया भरोसा
इसी बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपने आलोचकों को मजबूत जवाब दिया है. चुनाव प्रचार में विपक्ष जिस थक चुके नीतीश और अब बदलाव चाहिए वाली लाइन को लगातार दोहरा रहा था, उसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. महिलाओं, गरीब तबकों और उनके सुशासन मॉडल पर भरोसा करने वाले वोटरों ने नीतीश को फिर मजबूत आधार दिया. कानून-व्यवस्था, सामाजिक सुधार और सरकारी योजनाओं का असर साफ दिखाई दिया. बीजेपी के साथ मिलकर यह बड़ी जीत नीतीश कुमार की राजनीतिक पकड़ को एक बार फिर साबित करती है.
नेशनल मैरेटिव कैसे काम करता है?
चुनाव का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन कांग्रेस का रहा. राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर जिन मुद्दों जैसे वोट चोरी और SIR प्रक्रिया को चुनावी हथियार बनाया, वे बिहार की जनता को प्रभावित नहीं कर पाए. स्थानीय मुद्दों से कटे रहने, टिकट वितरण में अनियमितता और कमजोर संगठन ने पार्टी को लगभग ज़मीन से गायब कर दिया. यह नतीजा फिर याद दिलाता है कि राष्ट्रीय नैरेटिव तभी काम करता है जब जमीनी संगठन मजबूत हो.
जन सुराज का क्या हुआ?
दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जिसकी चर्चा पूरे चुनाव में सबसे ज्यादा रही, वोटों में पूरी तरह नाकाम रही. दो साल की पदयात्रा, गांव-गांव संवाद और नई राजनीति की बात जनता को आकर्षित तो कर पाई, लेकिन वह समर्थन मतपेटी तक नहीं पहुंचा. नोटा से कम वोट मिलना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सिर्फ चर्चा, मीडिया और आंदोलन से राजनीतिक जमीन नहीं बनती उसके लिए संगठन, जातीय समीकरण और वर्षों से सक्रिय कैडर की आवश्यकता होती है.
बिहार की राजनीति का बदल दिया संतुलन
कुल मिलाकर, इन नतीजों ने बिहार की राजनीति का संतुलन बदल दिया है. बीजेपी सबसे बड़ी शक्ति बन गई है, नीतीश कुमार ने अपनी विश्वसनीयता फिर साबित की है, कांग्रेस बिखरी हुई दिखी, नई राजनीति की बातें हवा में खो गईं और विपक्ष का पूरा ढांचा कमजोर पड़ा. यह नतीजा साफ संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति केंद्र में बैठे नेतृत्व और मजबूत जमीन वाले गठबंधन की दिशा में ही आगे बढ़ेगी.
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