'पाकिस्तान के हाथ से गया बलूचिस्तान', बना 'Republic of Balochistan"

Republic of balochistan: क्या पाकिस्तान के हाथ से बलूचिस्तान निकल गया है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि, बलोच कार्यकर्ता मीर यार बैलोच समेत कई नेताओं ने पाकिस्तान से बलूचिस्तानकी आज़ादी की घोषणा कर दी.

Republic of balochistan: क्या पाकिस्तान के हाथ से बलूचिस्तान निकल गया है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि, बलोच कार्यकर्ता मीर यार बैलोच समेत कई नेताओं ने पाकिस्तान से बलूचिस्तानकी आज़ादी की घोषणा कर दी.

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Ravi Prashant
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Balochistan Pakistan dispute

बलोच मूवमेंट Photograph: (NN)

Republic of balochistan: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर ‘Republic of Balochistan’ बुधवार को टॉप ट्रेंड में रहा. इसकी शुरुआत उस समय हुई, जब बलोच कार्यकर्ता मीर यार बैलोच समेत कई नेताओं ने पाकिस्तान से बलूचिस्तान की आज़ादी की घोषणा कर दी. इस दौरान सोशल मीडिया पर एक स्वतंत्र बलूचिस्तान का नक्शा और बलोच झंडे लहराते हुए लोगों के वीडियो भी वायरल हुए.

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बलोच कार्यकर्ता मीर यार बलोच ने 9 मई को पोस्ट करते हुए लिखा, “एक ऐलान जल्द आना चाहिए क्योंकि आतंकवादी पाकिस्तान का पतन निकट है. हमने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है और भारत से अनुरोध करते हैं कि दिल्ली में बलूचिस्तानका आधिकारिक दफ्तर और दूतावास खोलने की अनुमति दी जाए.”

बलूचिस्तानऔर पाकिस्तान के बीच विवाद क्या है?

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा, लेकिन सबसे कम जनसंख्या वाला प्रांत है. यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों, जैसे गैस, खनिज और बंदरगाहों विशेषकर ग्वादर पोर्ट से भरपूर है. इसके बावजूद यह इलाका दशकों से गरीबी, बेरोज़गारी और उपेक्षा का शिकार रहा है. पाकिस्तान की सरकार इन इलाकों में कभी नजर डाला ही नहीं. ऐसे में सवाल है कि आखिर बैलोच विद्रोह के प्रमुख कारण क्या हो सकता है? 

बलोच नेताओं का दावा करते हैं कि पाकिस्तान सरकार और सेना इस क्षेत्र के संसाधनों का दोहन कर रही है, लेकिन बदले में स्थानीय लोगों को न तो रोज़गार मिलता है और न ही विकास. इसके अलावा बलोच लोगों की भाषा, संस्कृति और परंपराओं को दबाने की कोशिशें लगातार की जाती रही हैं. स्कूलों और मीडिया में उर्दू थोपे जाने की शिकायतें आम हैं.

 गंभीर मानवाधिकार आम है हनन

बलोच एक्टिविस्ट और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियां ग़ायबशुदगी, किडनैपिंग, और फर्ज़ी एनकाउंटर जैसे गंभीर अपराधों में लिप्त हैं. हजारों युवा और सामाजिक कार्यकर्ता पिछले कई वर्षों में लापता हो चुके हैं.

चीन-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडॉर

CPEC परियोजना को बलोच नेता “औपनिवेशिक कब्जा” बताते हैं. उनका आरोप है कि चीन और पंजाब के ठेकेदार इस क्षेत्र से अरबों डॉलर कमाते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिलता.

स्वतंत्रता की मांग आखिर कब से इतिहास

साल 1948 में पाकिस्तान द्वारा बलपूर्वक विलय किया गया. बलोच नेता दावा करते हैं कि पाकिस्तान ने 1948 में बलूचिस्तान को जबरन अपने में मिला लिया था. तब से ही स्वतंत्रता की मांग चल रही है. 1970 के दशक में बड़ा विद्रोह हुआ. जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में सेना और बलोच लड़ाकों के बीच खूनी संघर्ष हुआ था. साल 2006 में नवाब अकबर बुगती की हत्या की गई. इस घटना के बाद से विद्रोह ने और ज़ोर पकड़ लिया.

क्या बलोच हो जाएगा आजाद? 

ये कहना फिलहाल मुश्किल है कि बलोच आजाद होगा या नहीं. लेकिन इतना तय है कि आने वाले सालों में बलोच का मूवमेंट और तेज होगा. बलोच लिबरेशन आर्मी लगातार पाकिस्तानी आर्मी को निशाना बना रही है. कई मौके पर पाकिस्तानी सेना के जवान मारे गए हैं. ये संकेत बता रहे हैं कि बीएएल ने अपनी मूवमेंट को तेज कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान सरकार की हवा उड़ी हुई है. 

क्या भारत बलोच आंदोलन का समर्थन करता है?

भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से कभी बलोच स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन नहीं किया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में लाल किले से दिए गए भाषण में बलूचिस्तान जिक्र किया था.

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