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मोबाइल से कैंसर का खतरा नहीं, WHO ने भ्रम किया दूर, जानिए मोबाइल कितना सुरक्षित

WHO ने लोगों के इस भ्रम को दूर कर दिया है. इस रिव्यू रिपोर्ट में मोबाइल फोन और कैंसर के संबंध को जानने के लिए पूरी दुनिया में अब तक हुई तमाम स्टडीज का रिव्यू किया गया.

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Neha Singh
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Mobile Phones Cancer Risk

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Mobile Phones Cancer Risk: आजकल लगभग हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन नजर आ जाता है. स्टेटिस्टा पर पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की लगभग 70% आबादी स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रही है. स्मार्टफोन का इस्तेमाल हर उम्र के लोगों में काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके चलते इसके दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं. मोबाइल फोन को लेकर अक्सर इस तरह के डर और भ्रम की स्थिति लोगों में होती है कि इसके इस्तेमाल से कैंसर हो जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में. 

पूरी दुनिया की तमाम स्टडीज का हुआ रिव्यू

लोगों में एक बड़ा मिथ यह था कि मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडियो वेव्स ब्रेन, सिर और गले के कैंसर की वजह बनती हैं. लेकिन WHO ने लोगों के इस भ्रम को दूर कर दिया है.  इस रिव्यू रिपोर्ट में मोबाइल फोन और कैंसर के संबंध को जानने के लिए पूरी दुनिया में अब तक हुई तमाम स्टडीज का रिव्यू किया गया. जिसमें ये निष्कर्ष निकला कि मोबाइल से कैंसर का खतरा नहीं हैं. ज्यादा देर तक मोबाइल फोन चलाने के कई नुकसान होते हैं. इससे फोकस कम होता है. अटेंशन स्पैन कम हो जाता है. आंखों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. लेकिन ये पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. 

रिपोर्ट में ये आए नतीजे 

  • कैंसर का मोबाइल फोन से कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है.
  • मोबाइल फोन के इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर नहीं होता है.
  • फोन से सिर, गले या बॉडी में कहीं भी कोई कैंसर नहीं होता.
  • अगर पहले से कैंसर या ट्यूमर है तो इस पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता है.

इस तरह किया गया रिव्यू 

मोबाइल फोन को लेकर यह रिव्यू ऑस्ट्रेलियन रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी एजेंसी (ARPANSA) के नेतृत्व में किया गया. इसमें दुनियाभर की कुल 5,000 से अधिक शोध को शामिल किया गया. साल 1994 से लेकर 2022 के बीच पब्लिश 63 सबसे सटीक स्टडीज को रिव्यू में शामिल किया गया. रिव्यू करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि मोबाइल फोन चलाने से किसी तरह का कैंसर या ट्यूमर नहीं होता है.

नोमोफोबिया

कुछ लोग टॉयलेट में भी मोबाइल फोन साथ लेकर जाते हैं. इस आदत को ‘नोमोफोबिया’ कहते हैं. लोग हर एक छोटे-बड़े काम के लिए मोबाइल फोन पर निर्भर होते जा रहे हैं.

स्ट्रेस

ज्यादा स्मार्टफोन चलाने से स्ट्रेस लेवल बढ़ सकता है. इससे एंग्जाइटी बढ़ सकती है. साथ ही आंखों और गर्दन की मसल्स में तनाव बढ़ सकता है.

नींद

मोबाइल फोन से नींद प्रभावित होती है. अमेरिकन नेशनल स्लीप फाउंडेशन की एक स्टडी के मुताबिक, मोबाइल फोन या दूसरे गैजेट्स इस्तेमाल करने से नींद प्रभावित होती है.

आंख

ज्यादा देर तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने से ड्राई आइज, ब्लर विजन और सिरदर्द की समस्या हो सकती है. आंखों में तनाव बढ़ता है. आंखों की रोशनी प्रभावित हो सकती है.

बच्चों का विकास 

फोन से बच्चों का विकास पर असर पड़ता है. छोटे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. उनकी फिजिकल ग्रोथ पर भी असर पड़ रहा है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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