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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : कोविड ने मेंटल हेल्थ पर डाला असर, आगे भी चुनौतियां

आज यानी 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है. आज दुनिया में एक अरब लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं जबकि जबकि 30 लाख लोग हर साल आत्महत्या या शराब के हानिकारक उपयोग से मर जाते हैं. आज दुनिया में अवसाद सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है.

Updated on: 10 Oct 2021, 03:25 PM

highlights

  • दुनिया में एक अरब लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त
  • 30 लाख लोग हर साल आत्महत्या या शराब से मर जाते हैं
  • दुनिया में आज अवसाद सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है

नई दिल्ली:

आज यानी 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है. आज दुनिया में एक अरब लोग मानसिक विकारों से ग्रस्त हैं जबकि जबकि 30 लाख लोग हर साल आत्महत्या या शराब के हानिकारक उपयोग से मर जाते हैं. आज दुनिया में अवसाद सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है. इससे निपटने के लिए अलग-अलग देशों के स्वास्थ्य विभाग जुटी हुई है. हालांकि इसके बावजूद मानसिक स्वास्थ्य एक अलग चुनौती बनी हुई है. आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बहुत ज्यादा जरूरी है. चिंता हमें तनाव देती है और अगर ये तनाव लंबे समय तक बना रहे, तो ये डिप्रेशन यानी अवसाद में तब्दील हो सकता है. खासकर कोरोना के बीच मानसिक तनाव एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है. इससे न सिर्फ खुद को बल्कि अपने परिजनों को भी दूर रखने की कोशिश करनी चाहिए. भारत सहित दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर क्या स्थिति है इसी को लेकर आपको हम विस्तार से बता रहे हैं.

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महामारी ने दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित किया 

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हमें वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने और नए सिरे से इसके समाधान के लिए अवसर प्रदान करता है. 
COVID-19 के बाद मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ी समस्या बन चुकी है. महामारी ने दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है. आज ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां अधिक काम करने की जरूरत है. हम सभी मानसिक स्वास्थ्य से कहीं न कहीं पीड़ित हैं. मानसिक स्वास्थ्य की वजह से लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. आज डब्ल्यूएचओ का उद्देश्य उन लोगों के सपोर्ट को उजागर करना है जो अवसाद और आत्महत्या के विचार दोनों से पीड़ित हैं. अवसाद मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में से एक है. बिना विकार वाले व्यक्ति की तुलना में अवसाद से पीड़ित व्यक्ति के आत्महत्या से मरने की संभावना बीस गुना अधिक हो जाती है.

आत्महत्या का केस चिंता का विषय

आत्महत्या की वजह से दुनिया भर में व्यक्तियों, परिवारों, कार्यस्थलों और समुदायों को प्रभावित कर रही है. आज दुनिया भर में हर 100 मौतों में से एक आत्महत्या का केस सामने आ रहा है. आत्महत्या की वजह से आसपास के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता जा रहा है. यह हम में से प्रत्येक को प्रभावित कर रहा है जो वैश्विक चुनौती बनी हुई है. कई देशों में आत्महत्या को अभी भी एक आपराधिक कृत्य माना जाता है. दुनिया भर में कम से कम 20 देशों में आत्महत्या अवैध है और अन्य 20 देशों में शरिया कानून के तहत आत्महत्या का प्रयास दंडनीय है. आत्महत्या के प्रयास का अपराधीकरण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम के प्रयासों को कमजोर करता है और कमजोर व्यक्तियों और समूहों के बीच आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच को बाधित करता है. हम सभी को ऐसी दुनिया के लिए प्रयास करना चाहिए जहां लोगों को उनके मानसिक स्वास्थ्य से नहीं आंका जाना चाहिए.

आत्महत्या संबंधित कानूनों में सुधार की जरूरत

इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (आईएएसपी) के अध्यक्ष रोरी ओ' कॉनर ने कहा, कमजोर व्यक्तियों के अधिकारों को बरकरार रखने के लिए आत्महत्या के प्रयास को अपराध से मुक्त करना पहला कदम है. दुनिया के अन्य देशों से अपने कानूनों में सुधार करने और आत्महत्या के अपराधीकरण को समाप्त करने का आग्रह करते हुए हम कलंक को कम करने और समझ को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रगति कर सकते हैं और मानसिक स्वास्थ्य नीति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की दिशा में काम कर सकते हैं. हाल ही में युनाइटेड फॉर ग्लोबल मेंटल हेल्थ की रिपोर्ट डिक्रिमिनलाइजिंग सुसाइड: सेविंग लाइव्स, रिड्यूसिंग स्टिग्मा उन नागरिक कानूनों की जांच की है जो आत्महत्या को अपराधी बनाते हैं और दुनिया भर में उनके निहितार्थ हैं. रिपोर्ट का उद्देश्य आत्महत्या को अपराध से मुक्त करने के लिए अभियान चलाने वालों की प्रगति में मदद करना है. साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि मानसिक पीड़ित हर किसी व्यक्ति को कलंक और भेदभाव से मुक्त करते हुए समर्थन की आवश्यकता है.

इस वर्ष का थीम 'Mental Health in an Unequal World
इस वर्ष इसका थीम 'Mental Health in an Unequal World' है. डब्ल्यूएचओ की योजना मानसिक स्वास्थ्य उपचार के प्रति जागरूकता और इसकी पहुंच में असमानताओं और अंतराल को दूर करने की है. मनोचिकित्सकों का कहना है कि विकासशील राज्य होने के नाते झारखंड अभी भी मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित लोगों को इलाज उपलब्ध कराने के मामले में सीमित बुनियादी ढांचे और संसाधनों के साथ जूझ रहा है.  

कोविड के बाद मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च को लेकर उठ रहे मुद्दे
रांची में केंद्रीय मनोरोग संस्थान में मनोचिकित्सा के सहायक प्रोफेसर डॉ. निशांत गोयल ने कहा, भारत के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, हमने पाया कि सामान्य मानसिक बीमारियों के उपचार में अंतर 90 प्रतिशत से अधिक है. यह लंबे समय से इस ओर ध्यान नहीं देने का परिणाम हो सकता है, क्योंकि सरकारें मानसिक स्वास्थ्य पर अपने स्वास्थ्य बजट का औसतन 2 प्रतिशत से अधिक खर्च करती हैं. गोयल ने कहा कि कोविड -19 महामारी ने मनोचिकित्सकों को मानसिक स्वास्थ्य में कम निवेश के मुद्दे को उठाने का मौका दिया, लेकिन इसने झारखंड के कई हजार निवासियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी कहर बरपाया. वायरस के डर से राज्य में मानसिक विकारों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. 

कोरोना के बाद मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां बढ़ीं
आज महामारी के समय में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इससे पहले ऐसा पहले कभी नहीं हुआ क्योंकि सभी आयु वर्ग और व्यवसायों के लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खामियाजा भुगत रहे हैं. स्वास्थ्यकर्मी और अन्य फ्रंटलाइन कार्यकर्ता, छात्र, अकेले रहने वाले लोग और पहले से प्रभावित मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोग विशेष रूप से इसकी चपेट में आए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, हाल के वर्षों में वैश्विक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मानसिक स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण भूमिका की स्वीकार्यता बढ़ी है. 

डिप्रेशन सबसे आम मानसिक स्वास्थ्य बीमारी में से एक

मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोगों में समय से पहले मरने का खतरा अधिक होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, डिप्रेशन सबसे आम मानसिक स्वास्थ्य बीमारी में से एक है, जो विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है, जबकि आत्महत्या 15-29 वर्षीय लोगों में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है. “निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ रहने वाले अधिकांश लोगों को पर्याप्त इलाज नहीं मिलता है. COVID-19 महामारी ने हमारी चुनौतियों को कई गुना बढ़ा दिया है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने के परिणामस्वरूप अभी तक गुणवत्तापूर्ण मानसिक सेवाओं के पैमाने में वृद्धि हुई है. खासकर COVID-19 महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य और भी तीव्र हो गई है. 

मानसिक स्वास्थ्य बजट पर सिर्फ 2 प्रतिशत खर्च
वर्ष 2020 में WHO के 194 सदस्य राज्यों में से सिर्फ 51% ने बताया कि उनकी मानसिक स्वास्थ्य नीति या योजना अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मानवाधिकार उपकरणों के अनुरूप थी, जो 80% लक्ष्य से कम थी. और केवल 52% देशों ने मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और रोकथाम कार्यक्रमों से संबंधित लक्ष्य को पूरा किया, वह भी 80% लक्ष्य से काफी कम है. वहीं आत्महत्या की दर में 10% की कमी हुई जबकि केवल 35 देशों ने कहा कि उनके पास एक स्टैंड-अलोन रोकथाम रणनीति, नीति या योजना थी. हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किए गए सरकारी स्वास्थ्य बजट का प्रतिशत पिछले वर्षों के दौरान मुश्किल से बदला है, जो अभी भी लगभग 2% है.

अविकसित देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या अच्छी नहीं
वर्ष 2019 में जारी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के नवीनतम अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 970 मिलियन लोग मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिनमें से 197•3 मिलियन भारत में हैं, जिनमें 45•7 मिलियन अवसादग्रस्त विकारों के साथ और 44•9 मिलियन मानसिक विकारों से पीड़ित हैं. मानसिक स्वास्थ्यकर्मियों की औसत संख्या निम्न आय वाले देशों में प्रति 1 लाख पर एक से कम भी है जबकि उच्च आय वाले देशों में प्रति 1 लाख में 72 है. वहीं प्रति एक लाख जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य बिस्तरों की औसत संख्या निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में 7 से कम है जबकि उच्च आय वाले देशों में प्रति एक लाख जनंसख्या पर 50 से अधिक बिस्तर हैं. 
विश्व स्तर पर बच्चों और किशोरों के लिए बिस्तरों की औसत संख्या प्रति एक लाख जनसंख्या पर 1 से कम है. 


बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नहीं दिया जा रहा ध्यान
दुनिया भर में बच्चों की स्थिति के बारे में जारी एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस संकट से पहले भी बच्चे व किशोर, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के बोझ तले दबे हुए थे और उनकी मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियों के हल पेश करने के लिये, कोई ख़ास संसाधन निवेश नहीं हो रहा था. यूएन बाल एजेंसी की इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में, 10 से 19 वर्ष की उम्र के हर सात में से एक, पुष्ट हो चुकी मानसिक समस्याओं के साथ जीवन जी रहे हैं. इन हालात में, हर साल लगभग 46 हज़ार बच्चे या किशोर, आत्महत्या करके अपनी जान गँवा देते हैं और यह, इस आयु वर्ग में मौतें होने के शीर्ष कारणों में पाँचवाँ कारण है.इसके बावजूद मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों और मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये उपलब्ध धन के बीच गहरा अन्तर है. सरकारों के स्वास्थ्य बजटों का केवल दो प्रतिशत हिस्सा ही, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी ज़रूरतों पर ख़र्च किया जाता है. यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर का कहना है कि पिछले 18 महीने, बच्चों पर बहुत भारी रहे हैं.