कोविड-19 (Covid 19) की रोकथाम के लिए अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी द्वारा विकसित टीका बंदरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में प्रभावी साबित हुआ है. एमआरएनए-1273 नाम का यह टीका मॉडर्ना और अमेरिका (America) के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिसीज के वैज्ञानिकों ने मिलकर तैयार किया है. बंदरों पर किए गए इस टीके के परीक्षण परिणाम ‘न्यू इंग्लैण्ड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित हुए हैं. इस अनुसंधान में शामिल आठ बंदरों को तीन समूहों में बांटकर 10 या 100 माइक्रोग्राम के दो इंजेक्शन दिए गए.
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अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि टीका मिलने के बाद बंदरों में सार्स-कोव-2 को नियंत्रित करने वाली एंटीबॉडी काफी संख्या में उत्पन्न हो गईं. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, वैक्सीन ने बंदरों में सफलतापूर्वक इम्यून रेस्पांस डेवलप किया है. इससे बंदरों की नाक और फेफड़ों में कोरोना को फैलने से रोकने में सफलता मिली है. नाक में कोरोना वायरस को अपनी कॉपी बनाने से रोकना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तरह से कोरोना का दूसरों तक फैलना रुक जाता है.
खास बात यह है कि ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी वैक्सीन का बंदरों पर ट्रायल किया था, तब नतीजे ऐसे नहीं थे. इसलिए मॉडर्ना की वैक्सीन से कोरोना वायरस को मात देने की उम्मीदें और बढ़ गई हैं. मॉडर्ना ने एनिमल स्टडी में 8-8 बंदरों को तीन समूहों में बांटकर 10 या 100 माइक्रोग्राम की मात्रा में वैक्सीन दी या प्लेसीबो. यह भी दावा किया गया है जिन बंदरों को यह दोनों डोज दी गईं, उनमें ऐंटीबॉडीज का स्तर कोविड-19 से रिकवर हुए इंसानों में मौजूद ऐंटीबॉडीज से भी ज्यादा रहा.
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैज्ञानिकों ने मॉडर्ना की वैक्सीन का दूसरा इंजेक्शन देने के 4 हफ्ते बाद बंदरों को कोविड-19 वायरस से एक्सपोज किया. नाक के अलावा ट्यूब के जरिए फेफड़ों तक कोरोना वायरस संक्रमण पहुंचाया गया था. बताया जा रहा है कि लो और हाई डोज वाले 8-8 बंदरों के ग्रुप में 7-7 के फेफड़ों में दो दिन बाद कोई रेप्लिकेटिंग वायरस नहीं दिखा. लेकिन जबकि जिन्हें प्लेसीबो दिया गया था तो उन सब में वायरस मौजूद था.
एक बयान में कहा गया कि ऐसा पहली बार है जब कोई एक्सपेरिमेंटल कोविड वैक्सीन ने नॉन-ह्यूमन प्राइमेट्स के अपर एयरवे में इतनी तेजी से वायरल पर कंट्रोल किया है. दावा किया गया कि फेफड़ों में वायरस को रोकने वाली वैक्सीन बीमारी को गंभीर होने से रोक सकेगी, जबकि नाक में वायरस रेप्लिकेट करने से रोकने पर ट्रांसमिशन का खतरा कम होगा. हालांकि अब मॉडर्ना और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी-अस्त्राजेनेका अपनी वैक्सीन्स का बड़े पैमाने पर इंसानों पर ट्रायल करने में लगी हुई हैं.