मानव शरीर में मिला नया अंग, पढ़ें पूरी रिसर्च
एम्सटरडम स्थित नीदरलैंड्स कैंसर इंस्टिट्यूट के रिसर्चरों ने कहा कि इस खोज से रेडियोथेरेपी की वो तकनीकें विकसित करने और समझने में मदद मिलेगी, जिनसे कैंसर के मरीज़ों को लार और निगलने में होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकेगा.
एम्सटरडम:
साल 2020 समाप्त होने में 2 महीने बाकी है. यह साल कई घटनाक्रम के लिए याद किया जाएगा. कोरोना वायरस से लेकर मानव शरीर में गले के ऊपरी हिस्से में लार ग्रंथियों के सेट की खोज तक. जी हां सही पढ़ा आप ने वैज्ञानिकों ने लार ग्रंथियों का एक सेट खोजा है, जिससे जीवन और चिकित्सा विज्ञान को और बेहतर किए जाने में काफी मदद मिलेगी. खास तौर से गले और सिर के कैंसर के उन मरीज़ों के इलाज में, जिन्हें रेडिएशन थेरेपी से गुज़रना होता है.
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गले के किस हिस्से में है
ग्रंथियों का यह नया सेट नाक के पीछे और गले के कुछ ऊपर के हिस्से में मिला है, जो करीब 1.5 इंच का है. एम्सटरडम स्थित नीदरलैंड्स कैंसर इंस्टिट्यूट के रिसर्चरों ने कहा कि इस खोज से रेडियोथेरेपी की वो तकनीकें विकसित करने और समझने में मदद मिलेगी, जिनसे कैंसर के मरीज़ों को लार और निगलने में होने वाली समस्याओं को दूर किया जा सकेगा.
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'ट्यूबेरियल ग्लैंड्स' रखा गया नाम
रेडियोथेरेपी एंड ओंकोलॉजी नाम पत्र में प्रकाशित हुए शोध में शोधकर्ताओं ने लिखा कि मानव शरीर में ये माइक्रोस्कोपिक सलाइवरी ग्लैंड लोकेशन चिकित्सा विज्ञान के लिहाज़ से काफी अहम है, जिसे अब तक जाना ही नहीं गया था. रिसर्चरों ने इन ग्लैंड्स का नाम 'ट्यूबेरियल ग्लैंड्स' प्रस्तावित किया. इसकी वजह यह है कि ये ग्लैंड्स टोरस ट्यूबेरियस नाम के कार्टिलेज के एक हिस्से पर स्थित हैं. हालांकि कहा गया है कि इस बारे में और गहन रिसर्च की ज़रूरत है ताकि इन ग्लैंड्स को लेकर बारीक से बारीक बात कन्फर्म हो सके. अगर आने वाली रिसर्चों में इन ग्लैंड्स की मौजूदगी और इससे जुड़ी कुछ और जिज्ञासाओं का समाधान हो जाता है तो पिछले 300 सालों में नये सलाइवरी ग्लैंड्स की यह पहली अहम खोज मानी जाएगी.
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कैसे हुई इसकी खोज ?
रिसर्चर वास्तव में प्रोस्टेट कैंसर को लेकर स्टडी कर रहे थे और इसी दौरान संयोग से उन्हें इन ग्लैंड्स के बारे में पता चला. संकेत मिलने पर इस दिशा में और रिसर्च की गई. रिसर्चरों ने कहा कि मानव शरीर में सलाइवरी ग्लैंड्स के तीन बड़े सेट हैं, लेकिन जहां नई ग्लैंड्स मिली हैं, वहां नहीं. रिसर्चरों ने खुद माना कि इन ग्लैंड्स के बारे में पता चलना उनके लिए भी किसी आश्चर्य से कम नहीं था.
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