logo-image

Black Fungus: क्या कोरोना के इलाज में जिंक के इस्तेमाल से फैला है ब्लैक फंगस?

महामारी कोरोनावायरस के कहर के बीच ब्लैक फंगस के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. भारत में अब तक लगभग 8,848 म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले सामने आए हैं, जो कोविड-19 से उबरने वालों में तेजी से फैलने वाले संक्रमणों में से एक है.

Updated on: 23 May 2021, 02:16 PM

नई दिल्ली:

महामारी कोरोनावायरस के कहर के बीच ब्लैक फंगस के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. भारत में अब तक लगभग 8,848 म्यूकोर्मिकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले सामने आए हैं, जो कोविड-19 से उबरने वालों में तेजी से फैलने वाले संक्रमणों में से एक है. इस संक्रमण की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार ने ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एक प्रमुख दवा एम्फोटेरिसिन-बी की शीशियों के आवंटन में तेजी लाने पर जोर दिया है. इस दिशा में केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डी. वी. सदानंद गौड़ा ने एम्फोटेरिसिन-बी की 23,680 अतिरिक्त शीशियों के आवंटन की घोषणा की है. मंत्री ने यह भी बताया कि आवंटन कुल मरीजों की संख्या के आधार पर किया गया है, जो देश भर में लगभग 8,848 है.

गुजरात (5,800) और महाराष्ट्र (5,090) को अतिरिक्त एम्फोटेरिसिन-बी शीशियों की अधिकतम संख्या आवंटित की गई है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (2,310), मध्य प्रदेश (1,830), राजस्थान (1,780), कर्नाटक (1,270) का नंबर आता है.

गुजरात में सबसे अधिक 2,281 ब्लैक फंगस के मामले सामने आए हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (2,000), आंध्र प्रदेश (910), मध्य प्रदेश (720) राजस्थान (700), कर्नाटक (5,00), हरियाणा (250), दिल्ली (197), पंजाब ( 95), छत्तीसगढ़ (87), बिहार (56), तमिलनाडु (40), केरल (36), झारखंड (27), ओडिशा (15), गोवा (12) और चंडीगढ़ (8) का स्थान है.

और पढ़ें: Alert: नए वेरिएंट पर कोरोना वैक्सीन असरदार, लेकिन एक डोज नाकाफी

ब्लैक फंगस पर विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों ने कोरोना संक्रमितों के उपचार में जिंक का उपयोग बंद कराने की मांग की और कहा कि इस बीमारी के पीछे अन्य कारणों का पता लगाना चाहिए. इस संबंध में इंडियन मेडिकल एसोसिशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर राजीव जयदेवन ने कहा कि शरीर में जिंक और आयरन जैसी धातु की मौजूदगी ब्लैक फंगस के लिए उपयुक्त वातावरण उत्पन्न करती है. उन्होंने यह भी कहा कि जिंक और ब्लैक फंगस के बीच के संबंध की जांच की जानी चाहिए.

वहीं पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में लाइफ कोर्स एपिडेमियोलॉजी के प्रमुख  ने बताया कि ब्लैक फंगस की महामारी के लिए कई तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. ब्लैक फंगस की जांच किसी अच्छे माइकोलॉजिस्ट और बायो मैकेनिकल इंजीनियरों की एक टीम से इसके कारणों की जांच कराई जानी चाहिए.

ब्लैक फंगस

ब्लैक फंगस एक गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल संक्रमण है जो म्यूकोर्मिसेट्स नामक मोल्ड के समूह के कारण होता है, जो कोविड-19 रोगियों में विकसित हो रहा है. फंगल रोग आमतौर पर उन रोगियों में देखा जा रहा है, जिन्हें लंबे समय से स्टेरॉयड दिया गया था और जो लंबे समय से अस्पताल में भर्ती थे, ऑक्सीजन सपोर्ट या वेंटिलेटर पर थे. इसके अलावा यह स्वच्छता की कमी के कारण भी फैलता है. ऐसे मरीज भी इसकी चपेट में आए हैं, जिन्हें अस्पताल की खराब स्वच्छता का सामना करना पड़ा या जो अन्य बीमारियों जैसे मधुमेह के लिए दवा ले रहे थे.

अगर समय पर इलाज न किया जाए तो ब्लैक फंगस का संक्रमण घातक हो सकता है. कोविड दवाएं शरीर को कमजोर और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर सकती हैं. इससे मधुमेह और गैर-मधुमेह कोविड-19 रोगियों दोनों में रक्त शर्करा का स्तर भी बढ़ सकता है.