पीएम नरेंद्र मोदी के गढ़ में 27वें प्रत्याशी से बीजेपी की बढ़ी मुश्किल, जानें क्या है गणित
यूपी की वाराणसी (Varanasi) सीट में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) समेत 26 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.
highlights
- उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी
- पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ 26 प्रत्याशियों ने ठोका है ताल
- 27वां प्रत्याशी पीएम नरेंद्र मोदी के लिए खड़ी कर सकती है मुसीबत
नई दिल्ली:
यूपी की वाराणसी (Varanasi) सीट में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) समेत 26 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन यहां बीजेपी के लिए जो मुसीबत बना हुआ है वो है 27वां प्रत्याशी नोटा (NOTA). बनारस में चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में नोटा की हरकत ज्यादा सक्रिय दिखाई पड़ी है. हालांकि, 2014 के आम चुनाव में भी नोटा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. तब मात्र 2051 ही वोट नोटा को मिले थे, लेकिन इस बार इसकी संख्या अधिक होने के आसार हैं.
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पहली बार वाराणसी में नोटा को लेकर लोग डोर-टू-डोर कैंपेन करते दिखाई पड़े. इसका बड़ा कारण यह है कि जो लोग नोटा के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं और इसमें जी जान से जुटे हैं ये वही लोग हैं जो बीजेपी के स्थापना काल से कोर बीजेपी (BJP) और आरएसएस (RSS) से जुड़े रहे हैं.
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वाराणसी में शहर दक्षिणी का पुराना मोहल्ला पक्का महाल है. उसमें भी लाहौरी टोला तो बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. इसी लाहौरी टोला में पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ कॉरिडोर (Vishwanath Corridor) आया. इसके जद में यहां के 279 मकान आए, जिसे सरकार ने तोड़ दिया. इससे प्रभावित लोगों ने अपने घरों को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन जब वे सरकार से हार गए तो अब चुनाव में वो पीएम मोदी को सबक सिखाने के लिए नोटा को अपना प्रत्याशी मान प्रचार में जुट गए हैं.
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ये लोग सिर्फ अपने ही इलाके में नहीं बल्कि उन इलाकों में भी जा रहे हैं, जहां इस तरह का समान दर्द मिला है. इनमें एक माझी समाज भी है, क्योंकि माझी समाज भी इन पांच सालों में अपने रोजी-रोटी को लेकर बराबर संघर्ष करता रहा है. कभी गंगा में क्रूज को लेकर तो कभी गंगा में जेटी लगाने के मुद्दे को लेकर. उनकी इस नाराजगी को अपने तरफ करने के लिए भी नोटा के समर्थक लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं.
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समाजवादी पार्टी (SP) के नाराज विधायक सुरेंद्र पटेल तो अपनी पार्टी में कांग्रेस से आईं शालिनी यादव के विरोध में बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर विरोध जताते हुए नोटा का बटन दबाने के लिए न सिर्फ अपील की बल्कि गांव-गांव जाकर प्रचार भी कर रहे हैं. बनारस में लोगों के आम मुद्दे को लेकर संघर्ष करने वाले क्रांति फाउंडेशन के राहुल सिंह कहते हैं कि बीते पांच सालों में बनारस के अंदर की हालात और भी खराब हुई है. लोग गलियों में सीवर, सड़क और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. नाउम्मीदी में गुजरे पांच साल का हिसाब अब ये लोग नोटा का बटन दबा कर अपना विरोध जाता कर पूरा करेंगे.
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नोटा के इतिहास पर अगर गौर फरमाएं तो साल 2013 से लेकर 2017 तक 1. 37 करोड़ लोग नोटा को वोट दे चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में तकरीबन 60 लाख लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. मध्यप्रदेश, राजस्थान के विधानसभा चुनाव में तो नोटा ने कई सीट पर बीजेपी के गणित को ही बिगाड़ दिया था. यही वजह है कि बनारस में नोटा को लेकर हो रहे प्रचार से बीजेपी बेहद संजीदा है, क्योंकि पीएम के संसदीय क्षेत्र में नोटा की संख्या अगर बढ़ी तो बड़ी किरकिरी हो सकती है.
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