स्टारकास्ट: सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी
रेटिंग: 3.5 स्टार्स
क्या आज भी हमारे समाज में जातिवाद जिंदा है?
इस सवाल को उठाती है सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की फिल्म ‘धड़क 2’, जो 1 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. फिल्म को लेकर दर्शकों में काफी एक्साइटमेंट हैं, खासतौर पर इस नई जोड़ी को लेकर, लेकिन क्या ये फिल्म उस उम्मीद पर खरी उतरती है? आइए जानते हैं इस रिव्यू में...
कहानी:
‘धड़क 2’ की कहानी एक भोपाल में रहने वाले नीलेश अहिरवार (सिद्धांत चतुर्वेदी) नाम के एक लड़के की है, जो एक दलित परिवार से आता है और वकालत की पढ़ाई कर रहा है. वो इसलिए वकील बनना चाहता है क्योंकि बचपन से ही उसे उसकी जाती को लेकर नीचा दिखाया जाता है. ऐसे में वो अपने अंदर एक सपना पालता है, एक ऐसा भारत का जहां हर कोई बराबरी से जी सके, बिना जाति और भेदभाव के. नीलेश बड़ा वकील बनकर अपनी मां को सबकुछ देना चाहता है जो ऊंची जाति के पास है. लेकिन उसकी ये सोच तब एक कठिन मोड़ लेती है जब उसे एक ऊंची जाति की लड़की विधि से प्यार हो जाता है. उनका रिश्ता न तो घरवाले समझ पाते हैं, न ही समाज. जहां नीलेश मोहब्बत में भरोसा करता है, वहीं समाज उसे उसकी जाति की ‘हद’ याद दिलाता रहता है.
नीलेश और विधि के रिश्ते में सबसे बड़ा रोड़ा बनता है लड़की का परिवार. खासकर उसका भाई रॉनी (सौरभ सचदेवा), जो पंडित जाति से होने पर गर्व करता है और हर हाल में इन दोनों को अलग करना चाहता है. रॉनी कहानी का मुख्य विलेन है.रॉनी और उसके पिता मिलकर नीलेश की हत्या की साजिश रचते हैं. फिल्म दिखाती है कि कैसे एक पढ़ा-लिखा दलित युवक आज भी अपने आत्म सम्मान और प्रेम के लिए लड़ रहा है, जबकि समाज उसे अब भी पीछे खींचने में लगा है. अब सवाल ये उठता है कि क्या नीलेश अपने प्यार जीतेगा या समाज की सोच सबकुछ मिटा देगी? ये जानने के लिए आपको सिनेमाघरों तक जाना पड़ेगा.
एक्टिंग
सिद्धांत चतुर्वेदी (Siddhant Chaturvedi) ने नीलेश के किरदार में एक गहराई और सच्चाई भर दी है. वो जब भी स्क्रीन पर होते हैं, उनकी आंखें बोलती हैं-दर्द, गुस्सा और उम्मीद तीनों एक साथ.
तृप्ति डिमरी (Tripti Dimri) का किरदार थोड़ा सीमित है, लेकिन वो अपनी मौजूदगी से असर छोड़ती हैं. उनका किरदार और ज्यादा बेहतर लिखा जा सकता था, जिससे दर्शक उससे जुड़ पाते.
सौरभ सचदेवा (Saurabh Sachdeva) का काम कमाल का है. निगेटिव रोल में वो छा गए हैं. जब-जब वो स्क्रीन पर आते तो उन्हें देखकर डर लग जाता कि अब क्या करेंगे. वहीं विपिन शर्मा (Vipin Sharma) और जाकिर हुसैन जैसे कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है.
डायरेक्शन
शाजिया इकबाल ने इस फिल्म के जरिए समाज की जिस कड़वी सच्चाई को दिखाने की कोशिश की है, उसमें वे पास हो गई हैं. लेकिन इसका ट्रीटमेंट थोड़ा कमजोर पड़ जाता है. पहला हाफ काफी धीमा है और लव स्टोरी की गहराई उतनी नहीं दिखती, जितनी उम्मीद की जाती है. सेकंड हाफ में थोड़ी तेजी जरूर आती है, लेकिन तब तक दर्शक काफी कुछ मिस कर चुके होते हैं.
क्या देखें या छोड़ें?
अगर आप समाज में फैली असमानता और जात-पात के मुद्दों पर बनी फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो धड़क 2 एक बार देखी जा सकती है. लेकिन अगर आप पहली धड़क जैसी गहराई वाली प्रेम कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको अधूरा सा महसूस करवा सकती है. फिल्म में लव स्टोरी पर कम फोकस किया गया है.
फाइनल वर्डिक्ट
धड़क 2 एक जरूरी विषय को उठाती है, ये फिल्म समाज को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आज भी जाति इंसान की पहचान से ऊपर है?
Review By- Sonali Sinha
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