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महामंडलेश्वर बनने के लिए करना पड़ता है ये त्याग
Mamta Kulkarni: 90 के दशक की मशहूर एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी ने फिल्मी दुनिया और जीवन के सारे मोह-माया को त्याग कर संन्यास का रास्ता चुन लिया है. कभी अपने ग्लैमर से लोगों के दिलों को जीतने वाली एक्ट्रेस ने किन्नर अखाड़े में शामिल होकर संन्यास ले लिया है . ममता कुलकर्णी अब किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बन चुकी हैं. एक्ट्रेस ने अपना पिंडदान कर महामंडलेश्वर की उपाधि ली है. वहीं महामंडलेश्वर बनने के बाद अब ममता का नया नाम श्री यामाई ममता नंद गिरि रखा गया है. यह दीक्षा किन्नर अखाड़े की अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने दी है.
12 साल तक रहीं ब्रह्मचारी
बता दें कि महामंडलेश्वर बनना आसान नहीं है. इसके लिए कड़ी तपस्या करनी पड़ती है. सबसे पहले किसी गुरु के साथ जुड़कर साधना और आध्यात्मिक शिक्षा लेनी होती है. ममता ने वह 12 साल तक ब्रह्मचारी रही थी. वहीं इस दौरान परिवार, धन और सारी दुनियादारी को छोड़ना पड़ता है और गुरु की देखरेख में भंडारे और सेवा के काम करने होते हैं. वहीं 12 साल की इस तपस्या के बाद जब गुरु को लगता है कि उनका शिष्य पूरी तरह संन्यास लेने के लिए तैयार है, तभी उसे महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाती है.
#WATCH | #MahaKumbh2025 | Former actress Mamta Kulkarni performs her 'Pind Daan' at Sangam Ghat in Prayagraj, Uttar Pradesh.
— ANI (@ANI) January 24, 2025
Acharya Mahamandleshwar of Kinnar Akhada, Laxmi Narayan said that Kinnar akhada is going to make her a Mahamandleshwar. She has been named as Shri Yamai… pic.twitter.com/J3fpZXOjBb
ये होती है प्रक्रिया
इतना ही नहीं इस बीच महामंडलेश्वर बनने के लिए आवेदन करने वाले की पूरी जांच की जाती है. अखाड़ा परिषद आवेदक का बैकग्राउंड पूरी तरह से चेक करता है और ये सुनिश्चित करता है कि वो महामंडलेश्वर बनने के योग्य है या नहीं. इसके लिए उसके परिवार, पड़ोसी, रिश्तेदारों से पूछताछ होती है और यहां तक कि पुलिस रिकॉर्ड की भी जांच होती है. अगर किसी तरह की गड़बड़ी मिलती है, तो उसे दीक्षा नहीं दी जाती है.
पिंडदान के साथ-साथ करना होता है ये त्याग
वहीं आखिर में आपको बता दें कि महामंडलेश्वर बनने के लिए प्रक्रिया भी की जाती है. सबसे पहले अखाड़े को आवेदन दिया जाता है. इसके बाद दीक्षा देकर संत बनाया जाता है. वहीं इसके बाद नदी किनारे मुंडन और स्नान के बाद परिवार और खुद का पिंडदान करवाया जाता है. उसके बाद हवन के बाद गुरु दीक्षा देते हैं और आवेदक की चोटी काट दी जाती है.
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